Friday, 25 September 2020

चिकित्सा शिक्षा में ऐतिहासिक सुधार: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) का गठन

भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) को ख़त्म किया गया

चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के संविधान सहित बड़े बदलाव किए गए हैं। साथ ही 4 स्वायत्त बोर्डों का गठन भी किया गया है। इसके साथ ही दशकों पुरानी संस्था भारतीय चिकित्सा परिषद को खत्म कर दिया गया है। एनएमसी के साथ-साथ स्नातक और परास्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्डों, चिकित्सा आकलन और मानक बोर्ड, और नैतिक एवं चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड का गठन किया गया है, जो एनएमसी को दिन प्रतिदिन के कम काज में मदद करेंगे।

इस ऐतिहासिक सुधार के चलते भारतीय चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी और गुणवत्तापूर्ण उत्तरदायी व्यवस्था बनेगी। इसके तहत सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि नियामक नियंत्रक का चयन योग्यता के आधार पर किया जाएगा ना कि चुने गए नियामक नियंत्रक द्वारा। महिला एवं पुरुषों के शुचिता पूर्ण एकीकरण, व्यवसायीकरण, अनुभव और व्यक्तित्व को महत्त्व मिलेगा इससे चिकित्सा शिक्षा में और सुधार होंगे।

इस संबंध में अधिसूचना बीती रात 24 सितंबर 2020 को जारी कर दी गई थी

एम्स में ईएनटी विभाग में प्रोफेसर डॉ. एस. पी. शर्मा (सेवानिवृत्त) को 3 वर्षों की अवधि के लिए अध्यक्ष के पद पर चुना गया है। एनएमसी के अध्यक्ष के अलावा 10 अन्य अधिकारी सदस्य होंगेजिनमें चारों स्वायत्त बोर्डों के अध्यक्ष शामिल हैं जिन पर पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के निदेशक डॉ. जगत राम, टाटा मेमोरियल अस्पताल के डॉ. राजेंद्र बादवे और गोरखपुर एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर को नियुक्त किया गया है।

एनएमसी में 10 नामित सदस्य होने जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों के उपकुलपति स्तर के होंगे। 9 मनोनीत सदस्य राज्य शिक्षा परिषदों से होंगे और विविध सेवा क्षेत्रों से जुड़े तीन विशेषज्ञ सदस्य होंगे। महाराष्ट्र के मेलाघाट जनजातीय क्षेत्र में काम करने वाली जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ स्मिता कोल्हे और फूटसोल्जर फॉर हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ श्री संतोष कुमार क्रालेती विशेषज्ञ सदस्यों के तौर पर शामिल किए गए हैं। एनएमसी के सचिवालय में सचिव के तौर डॉ. आरके वत्स नेतृत्व करेंगे।

एनएमसी के साथ-साथ जिन चार बोर्डों पर गठन किया गया है वह भी आज से प्रभावी हो गए हैं।इसमें स्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्ड, परास्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्ड के अलावाविदेशों में स्नातक/परास्नातक चिकित्सा शिक्षा तथा मान्यता हेतु मूल्यांकन और चिकित्सकों के आचरण से जुड़े मामलों के लिए आकलन और मानक बोर्ड तथा नैतिक एवं चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड शामिल हैं।

डॉ. वीके पॉल के अधीन शासक मंडल द्वारा की गई सुधारों की पहल को एनएमसी आगे बढ़ाएगा। देश में एमबीबीएस सीटों को 2014 के 54,000 की तुलना में 2020 में 48 प्रतिशत बढ़ाकर पहले ही 80,000 किया जा चुका है। इसी अवधि के दौरान परास्नातक के लिए सीटों की संख्या में 79 प्रतिशत की वृद्धि की गई है और यह 24,000 से बढ़कर अब 54,000 हो गई है।

एनएमसी का मुख्य कार्य नियामक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना,संस्थाओं का मूल्यांकन, एचआर आकलन और शोध पर अधिक ध्यान देना है। इसके अलावा एमबीबीएस के उपरांत कॉमन फाइनल ईयर परीक्षा के तौर-तरीकों पर काम करना है जिसका उद्देश्य पंजीकरण और परास्नातक प्रवेश के लिए सेवाएं देना, निजी चिकित्सा विद्यालयों के शुल्क ढांचे का नियमन करना और सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने के बारे में मानक तय करना जिसमें सीमित सेवा लाइसेंस दिया जाएगा।

यहां उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में संसद ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम 2019 को पारित किया था।

25 सितंबर 2020 से एनएमसी अधिनियम के प्रभावी होने के साथ ही भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 को खत्म कर दिया गया है और भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा नियुक्त किए गए शासक मंडल को भी तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया है।

सौजन्य से: pib.gov.in

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