Friday, 4 September 2020

आईआईपीए कैम्पस, नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना के लिए एमओटीए और आईआईपीए के बीच समझौता हुआ

जनजातीय क्षेत्रों में विकास योजनाओं के प्रभाव का आकलन करने में सक्षम बनाने के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थानों की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता : श्री अर्जुन मुंडा

आदिवासी उत्पादों की ब्रांडिंग और विपणन को मिलना चाहिए महत्व : अर्जुन मुंडा

केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में आईआईपीए कैम्पस, नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान (एनआईटीआर) की स्थापना के लिए आज जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए) और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। प्रस्तावित राष्ट्रीय संस्थान अगले कुछ महीनों में काम करना शुरू कर देगा और देश भर के प्रतिष्ठित सरकारी तथा गैर सरकारी एनजीओ के साथ मिलकर गुणवत्तापूर्ण जनजातीय अनुसंधान करेगा। जनजातीय मामलों के लिए उत्कृष्टता केन्द्र (सीओई), भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली द्वारा आयोजित “नेशनल ट्राइबल रिसर्च कॉनक्लेव” के समापन सत्र के दौरान इस समझौते पर जनजातीय कार्य मंत्रालय में सचिव श्री दीपक खांडेकर और आईआईपीए के डीजी श्री एस. एन. त्रिपाठी द्वारा हस्ताक्षर किए गए।

वेबिनार के माध्यम से वर्चुअल रूप में हो रहे दो दिवसीय नेशनल ट्राइबल रिसर्च कॉनक्लेव के समापन सत्र को संबोधित करते हुए श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय ने जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा व्यावहारिक मॉडल तैयार किए गए हैं जो नीतिगत पहलों द्वारा लागू किए जाने वाले क्रिया शोध के तहत पूर्ण समाधान उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय अनुसंधान संस्थान (टीआरआई) अहम भूमिका निभाते रहे हैं और उनके अनुसंधान भावी विकास के लिए एक रूपरेखा तैयार करने पर केन्द्रित होने चाहिए। मंत्रालय आदिवासी जीवन और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर शोध के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थान वित्तपोषण कर रहे हैं, लेकिन अब उनके अनुसंधान में नीति के साथ अनुसंधान की पहल पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि नए राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान में छात्रों को जनजाति विकास और जनजातीय कला तथा संस्कृति पर शिक्षित करने के लिए एक शैक्षणिक इकाई भी होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमें जनजातियों के जीवन को उन्हीं की आदिवासी बस्तियों में आसान और रहने योग्य बनाना है। स्वदेशी बीजों और उत्पादों को संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि पृथ्वी के पारिस्थितिकी संतुलन के लिए जैव विविधता प्रबंधन काफी अहम है और हमें इसका ध्यान रखना चाहिए।

श्री मुंडा ने कहा कि जनजातीय उत्पादों की ब्रांडिंग और विपणन पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये उत्पाद खरीदने के लिए ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग वाले उत्पादों की खोज की कोशिश करनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मानकों वाले उत्पादों का विकास करना चाहिए। पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि चहुंमुखी विकास सुनिश्चित करने के लिए पंचायतों में एक रचनात्मक नेतृत्व का विकास आवश्यक है।

वेबिनार के माध्यम से वर्चुअल रूप में हुई दो दिवसीय नेशनल ट्राइबल कॉनक्लेव आज समापन हो गया।

जनजातीय अनुसंधान एवं विकास के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहे भारत रूरल लिवलीहुड फाउंडेशन (सड़क विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन); पीरामल फाउंडेशन; हिम्मोत्थान सोसायटी टाटा फाउंडेशन, आर्ट ऑफ लिविंग; सीआईआई; फिक्की; एसोचैम; और यूएनडीपी आदि संगठनों और संस्थानों के प्रतिनिधियों ने इस वर्चुअल कॉनक्लेव में भाग लिया।

सौजन्य से: pib.gov.in

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