“भारत ने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन के साथ ही आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को प्राथमिकता दी है”
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन डब्ल्यूएचओ की निदेशक, दक्षिण पूर्व एशिया (एसईए) डॉ. पूनम खेत्रपाल की क्षेत्र के सदस्य देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ हुई बैठक में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए। बैठक में कोविड-19 महामारी के संदर्भ में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को जारी रखने पर मुख्य जोर रहा।
शुरुआत में, श्री रोडेरिको ओफ्रिन (डब्ल्यूएचओ) ने मंत्रियों को कोविड-19 के दौरान डब्ल्यूएचओ द्वारा उपलब्ध कराए गए लॉजिस्टिक समर्थन के बारे में बताया और श्री सुनील बहल (डब्ल्यूएचओ) ने उन्हें वैक्सीन के विकास और आवंटन की नीति के लिए डब्ल्यूएचओ के कार्यक्रम से अवगत कराया।
डॉ. हर्ष वर्धन ने कोविड-19 पर भारत की रणनीति के संबंध में बताया। उन्होंने बताया कि “चीन के 7 जनवरी को डब्ल्यूएचओ को सूचित किए जाने के बाद से ही भारत तेजी से महामारी से निपटने की तैयारियां कर रहा था।” उन्होंने कहा कि इससे पहले एवियन इन्फ्लुएंजा, एच1एन1 पीडीएम09 इन्फ्लुएंजा, जीका जैसी वायरस जनित महामारियों के दौर में “सरकार की समग्र सोच का उपयोग करते हुए रोकथाम और प्रबंधन रणनीतियां तैयार करने” में एक संस्थागत सोच उपलब्ध कराई। उन्होंने कहा, “कोविड के प्रति सक्रिय और क्रमिक संस्थागत प्रतिक्रिया के दम पर ही विकसित देशों की तुलना में भारी जनसंख्या घनत्व और कम जीडीपी खर्च तथा प्रति व्यक्ति डॉक्टर व अस्पताल की कम उपलब्धता के बावजूद भारत में प्रति मिलियन आबादी पर काफी कम मामले संभव हुए हैं और प्रति मिलियन आबादी पर मौत भी खासी कम हुई हैं।”
लॉकडाउन के प्रभाव पर डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि “मामलों की वृद्धि में कमी लाने में यह काफी प्रभावी रहा और इससे सरकार को अपना स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा व परीक्षण सुविधाएं बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।” उन्होंने कहा कि “जनवरी में जहां एक ही प्रयोगशाला थी, वहीं आज भारत में 1,370 प्रयोगशालाएं हो चुकी हैं। अब भारतीय किसी भी स्थान से 3 घंटे से कम की यात्रा के बाद एक प्रयोगशाला तक पहुंच सकते हैं। 36 राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में से 33 डब्ल्यूएचओ की प्रति दिन प्रति मिलियन आबादी पर 140 लोगों के परीक्षण की सिफारिश से आगे निकल गए हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि रोकथाम की रणनीति खासी सफल रही है, जो इस बात से भी जाहिर होता है कि 50 प्रतिशत मामले तीन राज्यों से हैं और शेष 32 प्रतिशत मामले में सात राज्यों से हैं। वायरस के प्रसार को काफी हद तक रोक लिया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि डीआरडीओ द्वारा निर्मित मेक-शिफ्ट अस्पताल 1,000 मरीजों को भर्ती करने में सक्षम हैं, जिसके अलावा रिकॉर्ड 10 दिनों में 100 आईसीयू बिस्तर तैयार किए गए हैं। इसके साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण; राज्य, जिला और सुविधाओं के स्तर पर प्रशिक्षण; एम्स, नई दिल्ली द्वारा वेंटिलेटर प्रबंधन पर वेब आधारित प्रशिक्षण; देश भर के सभी अस्पतालों में कोरोना तैयारी के लिए मॉक ड्रिल (नकली अभ्यास); मौत की मुख्य वजह की पहचान में सहायता के लिए एम्स दिल्ली में दूरस्थ उपचार (टेलीमेडिसिन) सुविधाएं और उच्च प्रभावी पहल सहित अन्य गतिविधियों के दम पर ही मृत्यु दर 3.33 प्रतिशत (18 जून) से 2.11 प्रतिशत (3 अगस्त) पर लाने में कामयाबी मिली है।
डॉ. हर्ष वर्धन ने 25 मार्च, 2020 को प्रकाशित टेलीमेडिसिन प्रैक्टिस दिशानिर्देशों पर बोलते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत कोविड-19 के दौरान आवश्यक चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने में किस तरह से तकनीक का उपयोग कर रहा है; विश्व में अपनी तरह की पहली वेब आधारित नेशनल टेलीकंसल्टेशन सर्विस ऑनलाइन ओपीडी सेवा (मरीज से डॉक्टर) शुरू की गई, जिसके माध्यम से अभी तक 71,865 परामर्श पूरे किए जा चुके हैं; इसके अलावा 1,50,000 हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एचडब्ल्यूसी) में टेलीमेडिसिन सेवाओं; चिकित्सा विशेषज्ञों और सभी स्तरों पर अग्रणी कर्मचारियों में कौशल विस्तार के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण प्लेटफॉर्म आईजीओटी आदि; आरोग्य सेतु और इतिहास मोबाइल ऐप जैसी पहल की गईं, जिससे उपचार को बाधित किए बिना संक्रमण के प्रसार को रोकने में सहायता मिली है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि एक रणनीति के तहत भारत ने अपने केन्द्रों को कोविड और गैर कोविड केन्द्रों में बांट दिया है। इससे गंभीर से मध्यम और मामूली बीमार श्रेणी के मरीजों के बेहतर प्रबंधन में सहायता मिली और सुनिश्चित हुआ कि अस्पताल काम के बोझ के साथ अस्पताल में भर्ती मामलों का प्रभावी उपचार सुनिश्चित कर सकें। इससे भारत की मामलों से संबंधित मृत्यु दर वैश्विक औसत से नीचे लाने में सहायता मिली। उन्होंने कहा कि आज यह आंकड़ा 2.07 प्रतिशत से नीचे चला गया है।
डॉ. हर्ष वर्धन ने भारत द्वारा उठाए गए अन्य कदमों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों के सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों का फायदा दूसरों तक पहुंचाने के लिए उन्हें नेशनल हैल्थ इनोवेशन पोर्टल (एनएचआईएनपी) पर अपलोड कर दिया गया था। कुछ सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने संक्रमण प्रभावित क्षेत्रों और बफर जोन्स के भीतर भी अपनी टीकाकरण सेवाएं जारी रखीं और उच्च रक्तचाप व मधुमेह के मरीजों को उनके घर पर ही आवश्यक दवाइयां उपलब्ध कराईं। तेलंगाना ने सुरक्षित और संस्थागत डिलिवरी सुनिश्चित करने के लिए हर गर्भवती महिला को एक एम्बुलैंस उपलब्ध कराई। थैलेसेमिक और डायलिसिस मरीजों को भी समय से सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एम्बुलैंस उपलब्ध कराई गईं। ओडिशा और पश्चिम बंगाल कोविड और गैर कोविड आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचा व एचआर अलग-अलग कर दिया, जिससे उनका उचित उपयोग सुनिश्चित हो सका। आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड ने महामारी के दौरान सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में सभी प्रमुख एचआर के पद भरे। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और केरल जैसे राज्यों ने ईसंजीवनी ओपीडी सुविधा का उपयोग करते हुए दूरस्थ परामर्श के माध्यम से गैर आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराईं।
सौजन्य से: pib.gov.in
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