राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद 25 और 26 दिसंबर, 2019 को कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल और विवेकानंद केन्द्र को देखने पहुंचे।
इस अवसर राष्ट्रपति ने कहा कि हम ऐसे स्थान पर एकत्रित हुए हैं जो हमें निरंतर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह भारत माता के पद पर स्थित इस पत्थर की आध्यात्मिक शक्ति है जिसने आंतरिक शांति की खोज में लगे स्वामी विवेकानंद को कन्याकुमारी आने के लिए आकर्षित किया। 127 वर्ष पहले इसी दिन, 1892 में स्वामी जी ने इस पवित्र स्थल पर गहन ध्यान किया। तीन दिन और तीन रातों के बाद एक साधारण संत एक ज्ञान प्राप्त व्यक्ति के रूप में परिणत हो गया और भारतीय सनातन धर्म संस्कृति का वैश्विक संदेशवाहक बन गया। स्वामी जी ने यहीं पर ज्ञान प्राप्त किया और एक आध्यात्मिक क्रांति की शुरुआत हुई। यह एक व्यक्ति के मोक्ष प्राप्ति का प्रयास नहीं था बल्कि यह मातृभूमि के धार्मिक मूल्यों के पुनर्जीवन और लोगों की सेवा के लिए था।
इस संदर्भ में मुझे 19 मार्च, 1894 को लिखे स्वामी जी के पत्र की याद आती है। इस पत्र में उन्होंने अपनी योजनाओं का जिक्र किया था। उन्होंने परमार्थी सन्यासियों की कल्पना की थी जो गांव-गांव जाएंगे, लोगों को शिक्षित करेंगे और उनकी स्थिति बेहतर बनाने के लिए कार्य करेंगे। उन्होंने लिखा, “एक राष्ट्र के रूप में हमने अपना व्यक्तिगत स्वरूप खो दिया है और यही भारत में सभी बुराइयों का कारण है। हमें राष्ट्र को इसका खोया हुआ स्वरूप वापस देना होगा और लोगों की स्थितियों को बेहतर बनाना होगा।”
सौजन्य से: pib.gov.in
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