सभी वरिष्ठ महानुभाव।
मैं इस फोरम से काफी परिचित हूं, लेकिन पहले मैं वहां बैठता था, आज मैं यहां बैठा हूं, और वहां जब बैठता था, तो एक छोटे कमरे में मुख्यमंत्री और राज्य High Court के chief justice के बीच में एक छोटे फोरम में बैठते थे, Media नहीं होता था, Camera नहीं होता था, बड़ी खुलकर के बात होती थी और मेरी भी छवि ऐसी थी कि मैं जरा थोड़ा खुलकर के बोलता था। लेकिन अब शायद मैं इतना बोल पाऊंगा कि नहीं, मुझे पता नहीं।
लेकिन यह भी मैं मानता हूं कि मैं काफी खुलकर के बोलता था फिर भी मैं कह सकता हूं कि मैं बहुत कुछ बोलने से डरता था। और शायद यहां भी जो मुख्यमंत्री हैं, उनके मन में भी यह रहता होगा, कि भई हम कहे या न कहे, हमारी कठिनाईयां बताएं या न बताएं और इस स्थिति का मैंने अनुभव किया हुआ है और आज मैं यहां बैठा हूं तब मैं आवश्यक मानता हूं इन दोनों मुख्यधाराओं के बीच में हमारी संवादिता कैसे बढ़े, खुलापन कैसे आए, एक-दूसरे को मजबूती कैसे दें, जो मजबूती भारत की मजबूती के लिए हो। अगर हम इन चीजों को पूरा कर सकते हैं, तो हम इस देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। मैं उन विषयों को स्पर्श करना नहीं चाहता हूं, जो सामान्य तौर पर इस फोरम में हर बार चर्चा में रहे हैं। ज्यादातर रहा है चर्चा में विषय Pendency का। सबरवाल जी साहब थे, लाहौटी साहब थे, बालकृष्ण साहब थे, इन सबके कालखंड में मैं यह सुनता आया हूं। और आज भी उसकी चर्चा हो रही है। पूर्व प्रधानमंत्रियों के भाषण देखेंगे तो उसमें भी इस बात का जिक्र है। दूसरा विषय है हर किसी ने हर फोरम में भ्रष्टाचार के प्रति चिंता जताई है और इसलिए मुझे उसमें अब नया कुछ जोड़ना नहीं है और इसलिए मैं उस विषय को स्पर्श नहीं करता हूं। हर कोई इसकी चिंता कर रहा है, लेकिन समाधान हम अभी तक नहीं ढूंढ पाएं हैं, हो सकता है आज के फोरम की मीटिंग के बाद इस मंथन से भी हो सकता है सारी चीजों के रास्ते निकलेंगे।
लेकिन मुझे हमेशा यह बात ध्यान में आती है कि हम सब एक प्रकार के समान मनुष्य जीव है, अलग-अलग जिम्मेवारियां हम निभा रहे हैं। अलग-अलग कामों को अपनी योग्यता, क्षमता और संजोग के अनुसार हरेक को मिला है। लेकिन जो न्याय क्षेत्र में है, उनका वैसा नहीं है। वो भले हरेक के बीच में से आए है, हम जैसे लोगों के बीच में से आए हैं, लेकिन ईश्वर ने उनको Divine काम के लिए पसंद किया है। आपके पास जो काम है वो एक Divine काम है। आपके पास जो काम है, जो ईश्वर आपके माध्यम से करवाना चाहता है और इसलिए हम लोगों के पास जो काम है और देश के और जो सवा सौ करोड़ नागरिक के पास जो काम है, उससे आपका काम भिन्न है। और इसलिए आपकी जिम्मेवारियां भी बहुत हैं और देश की आपसे अपेक्षाएं भी बहुत है और सामान्य नागरिक की सर्वाधिक अपेक्षाएं हैं क्योंकि लेकिनउसको लगता है कि मैं भगवान के पास तो नहीं पहुंच पाता हूं, लेकिन एक जगह है जहां मेरा कुछ होगा। उसके लिए भगवान के पास नहीं पहुंच पाता हूं तो कहां पहुंचु, तो वो आपकी तरफ देखता है और उस अर्थ में कितना बड़ा Divine काम आपके पास है और मुझे विश्वास है कि आप जहां बैठे हैं, वहां हर पल उसी बात को स्मरण रखते हुए काम करते हैं और यह भाव किताबों में पढ़ाया गया नहीं है सामान्य नागरिक को। इस Institute ने अपने व्यवहार के कारण, अपनी परंपरा के कारण, अपने चरित्र के कारण सामान्य मानव के मन में यह आस्था पैदा की है। यह आस्था Inject की हुई आस्था नहीं है। यह Evolve हुई है और जब Evolve हुई है आस्था, तो उसकी ताकत भी बहुत ज्यादा होती है और इसलिए मुझे विश्वास है कि इस महान परंपरा को हम और अधिक उजागर कैसे करें और अधिक ओजस्वी, तेजस्वी कैसे बनाएं, यह हमारा दायित्व है।
अभी दत्तू साहब कह रहे थे Quality Man Power के लिए। आज तो हम भाग्यवान है कि आज हमारे पास इस क्षेत्र में जो Man Power है, उसके लिए हम गर्व का अनुभव करते हैं। लेकिन हमारा यह भी दायित्व है कि आने वाली पीढि़यों में कैसा Man Power इस क्षेत्र में आएगा और इसलिए हमारी जितनी चिंता Infrastructure को लेकर के है, जितनी चिंता Digital Form में, आधुनिक Technology के Form अपनी इस व्यवस्था को ढ़ालने की है, उससे अधिक हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि हम आने वाली पीढि़यों को तैयार के लिए इस field के लिए Human Resource development का हमारा Mechanism क्या होगा। उत्तम-से-उत्तम Breed, Law Faculty में कैसे आए। उत्तम-से-उत्तम Breed, Judiciary में कैसे जाए। और इसलिए हमारे इस काम के लिए जो Institutions हैं राज्य सरकारों की सर्वश्रेष्ठ जिम्मेवारी है कि हमारी Law Collages हो, Law Universities उसको हम किस प्रकार से समयानुकूल और भविष्य को ध्यान में रखकर के कैसे तैयार करें। और जितनी बड़ी मात्रा में हम इस क्षेत्र को बल देंगे, हमारी बहुत सारी आवश्यकताओं की पूर्ति होगी।
जब मैं मुख्यमंत्री था यहां बैठता था सामने। एक बार हमारी मीटिंग में एक विषय आया था, Pendency की चर्चा हो रही थी। एक High Court Judge ने जो Reporting किया वो कम से कम मुझे तो चौंकाने वाला था, उन्होंने कहा हमारी Court तो सप्ताह में दो-तीन दिन चलती है और चलती है वो भी दो-तीन घंटे चलती है, तो बोले हम Pendency कहां से कर सकते हैं। तो ऐसे ही मेरा मन कर गया कि पुछुँ तो सही क्या बात है यह? तो बोले नहीं कुछ कारण नहीं है लेकिन जो Building में हम बैठते हैं, उसमें उजाला नहीं है और बिजली आती नहीं है। आप कल्पना कर सकते हैं हम न्यायपालिका को बार-बार पूछते तो हैं कि भई Pendency क्यों है लेकिन कोई तो सोचो कि बिजली तक मुहैया नहीं है तो फिर वो Court कितने घंटे चलेगी। कितने दिन चलेगी, न्याय प्रक्रिया बढेगी कैसे। और इसलिए सारी जिम्मेवारियां एक एकतरफा नहीं है। और फिर कभी यह भी पता चलता है कि इसमें बिजली क्यों नहीं है, तो बोले कोई Five Star activist court में चला गया था तो वो Stay ले आया था तो वहां वो खम्भा डालने मना है। अब बताइये कहां जाए, बात कहां जाकर के रूकती है? और इसलिए हम एक comprehensive एक Integrated approach के साथ, सभी ईकाईयां मिलकर के सही दिशा में एक लक्ष्य निर्धारित करके चलेंगे, तो इन चीजों को पार करना कठिन नहीं है। Digital India भारत सरकार का एक बहुत बड़ा Mission का है। यह Digital India में मेरा अनुभव भी कहता है हम जितना जल्दी Technology का उपयोग हमारी न्यायिक व्यवस्थाओं में लाएंगे हमारी सुविधा बहुत बढ़ेगी, हमारी Qualitative change आएगा, हमारे काम में और आवश्यकता है Qualitative change की। कोई जमाना था जब Reference ढूंढना है तो 10 ग्रंथ हाथ लगाने पड़ते थे। आज कोई भी Reference ढूंढना है, just google गुरू के पास चले जाओ। दो मिनट में गुरू जी लेकर के आ जाते हैं। यह सुविधा बड़ी है, इस सुविधा का लाभ जितना तेजी से हम हमारी न्यायिक व्यवस्था की हर चीजें पुराने सारे Judgement वगैरह।
कल मुझे हमारे चंद्रचूड़ साहब मिले थे तो मुझे कह रहे थे कि इलाहबाद में कोई 50 करोड़ Pages already digital हो चुके हैं। बहुत बड़ा काम है, बहुत काम हुआ है। और यह मैं समझता हूं कि जितना तेजी से होगा, उतना आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में Efficiency लाने में बहुत काम आने वाला है। कभी-कभार यह भी लगता है कि देश को सशक्त न्यापालिका चाहिए या समर्थ न्यायपालिका चाहिए। Powerful Judiciary चाहिए या Perfect Judiciary चाहिए। मैं चाहूंगा कि इस फोरम में बैठे हुए सभी महानुभाव अपने-अपने दायरे में चर्चा करे। हम Powerful तो होते चले जा रहे हैं जितनी तेजी से Powerful हो रहे हैं और Powerful होना गलत नहीं है। लेकिन उतनी ही तेजी से Perfect अनिवार्य हो गया है। हमारी Judiciary Powerful हो, हमारी Judiciary Perfect भी हो। हम सशक्त भी हो, हम समर्थ भी हो, और यह आवश्यकता इसलिए है कि सामान्य मानव के लिए यह एक जगह है। मैं उस बिरादरी से हूं, मैं अपने आप को उस बिरादरी से होने के कारण भाग्यवान मानता हूं। भाग्यवान इसलिए मानता हूं कि हम चौबीसों घंटे हमारी scrutiny होती है। हर पल, हमने बायां पैर रखा कि दायां पैर रखा, हमारी बिरादरी की scrutiny होती है और वक्त इतना बदल चुका कि आज से दस साल पहले जो खबर Gossip Column में भी जगह नहीं लेती थी, वो आज Breaking News बन गई है। इतना अंतर आया है, जिसको कभी Gossip Column में भी जगह देने से Editor पचास बार सोचता था इसको Gossip Column में रखूं या न रखूं, वो आज Breaking News बन गया है। और हम चौबीसों घंटे उसकी Scrutiny होती है। उस बिरादरी से मैं हूं मुझे गर्व है, यह Scrutiny होती है मुझे उसका गर्व है। और इसके कारण, और हर पांच साल में जनता में जाकर हिसाब भी देना पड़ता है। यह Institution जिस बिरादरी से हम आते हैं, उसको काफी बदनामी मिली हुई है। लेकिन उसके बावजूद भी मैं आज कह सकता हूं कि इस बिरादरी ने, उस व्यवस्था ने शासक में बैठे राजनेताओं ने भी अपने पर बंधन लाने के लिए इतनी Institutions को जन्म दिया है। कानून उन्होंने खुद ने बनाए हैं। Election Commissions उसकी स्वतंत्रता हम पर बंधन डालती है, लेकिन हमने किया है। RTI हम पर बंधन डालती है, हमने किया है। इतना ही नहीं लोकपाल की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। हम पर बंधन डाल रहा है, हम कर रहे हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि व्यक्ति कितना ही अच्छा क्यों न हो, अगर Institutional Network अच्छा नहीं होगा, तो गिरावट आने की संभावना कभी भी हो सकती है।
और मैं हमेशा मानता हूं कि घर के अंदर मां-बाप पैसे Lock and Key में रखते हैं। क्या चोर से बचने के लिए? Lock and Key चोर के लिए बहुत छोटी चीज होती है। वो तो पूरी तिजोरी उठाकर के ले जा सकता है। मां-बाप घर में Lock and Key इसलिए रखते हैं कि बच्चे की आदत खराब न हो। इसलिए इस व्यवस्था को विकसित करते हैं। हमारे लिए भी आवश्यक है। हम भाग्यवान है कि दुनिया हमें देखती है, हमें डांटती है, हमारी आलोचना करती है, हमारी चमड़ी उधेड़ देती है। आपको वो सौभाग्य नहीं है। आपको न कभी आलोचना सुनने को मिलती है, न कोई आपको, इतना हीं नहीं जिसको सजा हो गई होगी, फांसी पर लटक गया होगा वो भी बाहर आकर बयान देता है कि मुझे न्यायतंत्र में विश्वास है, ऊपर मुझे न्याय मिलेगा। यानी इतनी credibility है इस Institution की। और जब आलोचना असंभव रहती हो, तब इन Inbuilt हमारी अपनी आत्मपरीक्षण की व्यवस्थाएं विकसित करने की समय की मांग है। हम उस प्रकार के Inbuilt Dynamic Mechanism को Develop करें। और जिसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। राजनेताओं का तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इसी faculty के लोग, हम वो क्या करें कि आज अगर हम इस व्यवस्थाओं को विकसित नहीं करेंगे। हम inherent उस DNA को Develop नहीं करेंगे तो जो आस्था जो कि evolve हुई है उसको छोटी-सी भी चोट आ जाएगी। मैं मानता हूं देश को बहुत नुकसान हो जाएगा। हम सरकार बनाने वाले लोग यह गलती करेंगे, तो गलती ठीक करने की जगह है और वो जगह आप है। लेकिन अगर आप गलती करेंगे तो फिर तो इसके सिवा कुछ नहीं बचा है। इसलिए हमें गलती करने का अधिकार नहीं है, लेकिन फिर भी अगर हम गलती करें तो कोई एक जगह है जहां सुधार हो सकेगा। बच जाएंगे, लेकिन अगर आप गलती करेंगे तो कुछ नहीं बचेगा।
और इस अर्थ में मैं एक Divine Power के रूप में आपको देखता हूं और उस Divine Power के रूप में देखता हूं तब हम सब मिलकर के हम मान कर चले हमारी आलोचना नहीं होने वाली है तो हमें ही बार-बार अपने आपकी आलोचना करनी है और यह कठिन काम है, मैं जानता हूं कि यह कठिन काम है। संविधान के दायरे में, नियमों में दायरे में न्याय देना कठिन नहीं है, क्योंकि आपके लिए दो मिनट में दूध का दूध और पानी का पानी कार्य करना ईश्वरदत आपको एक शक्ति होती है, एक तीसरी आंख आपके पास होती है, आप चीजों को देख पाते हैं, क्योंकि आपका विकास वैसा हुआ है, लेकिन Perception और Realty के बीच से खोजने के लिए बड़ी कठिनाई होती है। कभी हमें सोचना होगा कि आज कहीं Five Star activist तो हमारी पूरी Judiciary को Drive तो नहीं कर रहे। क्या एक प्रकार का हऊआ फैला कर के Judiciary को Drive करने का प्रयास नहीं हो रहा है? संविधान के दायरे में न्याय देना मुश्किल नहीं है? लेकिन Perception के माहौल में न्याय देना बहुत कठिन काम हो गया है और इसलिए आज से 15 साल 20 साल पहले Judiciary के लिए जो मुक्ति का आनंद था वो आनंद आज नहीं है। वो भी डरता है कि बाहर तो यह चल रहा है और मैं यह करूंगा तो क्या होगा। यह माहौल बन गया है और तब जाकर के Judiciary को जितनी हिम्मत ज्यादा मिले उसके लिए सभी को प्रयास करना पड़ेगा। चाहे वो सरकार में बैठे हुए लोग हो, चाहे Media में बैठे हुए लोग हो, चाहे Five Star activist की जमात हो। अगर हम इस Institution को ताकत नहीं देंगे तो हम ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे। और इसलिए मैं मानता हूं कि इन चीजों में बदलाव की आवश्यकता है और मुझे विश्वास है कि हम बदलाव ला सकते हैं।
जहां तक Infrastructure का सवाल है मैं स्वभावत: अच्छी व्यवस्थाओं का पक्षकार हूं। Poverty is a virtue इस Philosophy को मैं belong नहीं करता हूं। वरना हम लोग सदियों से यही पढ़ते आए हैं कि एक बेचारा गरीब ब्राह्मण, वहीं से शुरू होता है कि उसके फटे कपड़े थे और उसको सब बड़ा ही तपस्वी और वो मानने की फैशन नहीं है। वक्त बदल चुका है। उत्तम से उत्तम Infrastructure क्यों नहीं होना चाहिए। व्यवस्थाएं उत्तम से उत्तम क्यों नहीं होनी चाहिए और उस दिशा में प्रयास होना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इस सरकार में इस बात की प्राथमिकता है। इस बार भी करीब Nine thousand seven hundred forty nine crore Rupees 14th Finance Commission के कारण सीधे सीधे राज्यों के पास Specifically Earmark करके Judiciary के लिए दिये गये है और मैं राज्यों से आग्रह करूंगा कि वो पैसे कहीं इधर-उधर न जाए, न्यायपालिका के काम में जाए। तो आपने आप जो छोटी-मोटी समस्याएं है अपने आप सुलझ जाएगी।
और मैं आशा करूंगा कि राज्य के मुख्यमंत्री इस बात पर ध्यान देंगे, व्यक्तिगत ध्यान देंगे और यह कैसे हो सके इस बात पर चिंता करेंगे। हम लोगों ने आखिरकर कुछ चीजें हैं, मतलब जिस राज्य से मैं रहा गुजरात में लोक अदालत का सफल प्रयोग मैंने वहां देखा है। और एक बार मैंने हिसाब लगाया था कि 35 पैसे में न्याय मिलता था। Thirty Five Paisa, मैंने कल फिर रात को खाना खाते हुए कुछ Judges से बात हुई तो मुझे लगा कि मैं फिर एक बार Verify कर लूं। तो मैंने रात को ही थोड़ा पूछताछ की तो मुझे पता चला कि 35 पैसा में अब नहीं मिलता है, लेकिन Average 50-55 रुपये तक में न्याय मिल जाता है, खर्च होता है। मैं समझता हूं भारत जैसे देश में यह व्यवस्था बहुत ताकतवर है। हम देखेंगे कि इतनी सारी Pendency है, लेकिन Below Poverty line family के case minimum होंगे जी। यह बड़े-बड़े लोगों के ही case होते है जी, क्योंकि छोटे लोगों को तो वकील भी कहां मिलता है, वो बेचारा कहां जाएगा। और इसलिए गरीब के लिए जो जगह है वो इन छोटी-छोटी व्यवस्थाओं में है। हम इन लोक अदालत Type व्यवस्थाओं को बल दें, उसका Expansion करें, Judiciary के प्रवर्तमान लोग, judiciary के निवृत्त लोग एक ऐसा framework हम विस्तृत करें, अगर गरीब से और मैं देख रहा हूं कि बडे-बड़े मामले भी बैठकर के Solution आ रहा है। हो सकता है कि हम इस काम को करे तो उसकी चिंता हम लोगों को होगी।
एक विषय शायद मेरी बात लाहोटी साहब से हो रही थी। ऐसे ही बातों-बातों में उन्होंने चिंता व्यक्त की थी। इन दिनों जो परिवार टूट रहे हैं, तेजी से परिवार टूट रहे हैं बड़ी वो चिंता व्यक्त कर रहे थे, और यह दौर बढ़ता चला रहा है। हो सकता है कि इस प्रकार की संवाद वाले Institution जितनी family Court develop होगी, भारत जैसे देश में परिवार टूटना हमारे लिए एक बहुत बड़ा कष्टदायक होगा। हम उस वक्त Focus करके सामाजिक व्यवस्थाओं को बचाने में कैसे काम कर सकते हैं। इस पर हम संवदेनाओं को लाकर के उन चिंताओं को कैसे बढ़ा सकते हैं। अगर गरीब को न्याय देने के लिए अगर लोक अदालत है, तो परिवार को न्याय देने के लिए family अदालत है। खासकर के नारीशक्ति के कल्याण के लिए यह वयस्थाएं बहुत ताकतवर बनी है। उसको हम और अधिक आधुनिक कैसे बनाएं, आधुनिक Speedy कैसे बनाए और उसमें एक विश्वास बना हुआ है। वहां जाने वाले व्यक्ति को लगता है कि ठीक है भई चलो दो कदम मैं चला दो कदम तुम चलो रास्ता निकल गया छोड़ो अब नहीं जाना है अब अपना काम करो। यह मूड बन रहा है। और मैं मानता हूं इस मूड का और अधिक सार्थक बनने का हमें प्रयास करना चाहिए और वो प्रयास हम करेंगे, तो अवश्य ही लाभ होगा ऐसा मुझे लगता है।
सरकार में भी व्यवस्थाएं विकसित हुई कि भई हर चीज court में चली जाती है चलो inbuilt कोई ही Arrangement करे उसमें से Tribunals पैदा हुई। Tribunals को भी ज्यादातर lead करते हैं निवृत Judge, लेकिन मैंने आकर के देखा है कि मैं बहुत निराश हो गया हूँ। शायद आज भारत सरकार में, मुझे लगता है करीब-करीब हम सौ tribunals की ओर पहुंच रहे हैं और एक-एक Ministry की तीन-तीन-चार-चार tribunals बन गई हैं। और Tribunals का disposal तो और चिंताजनक है। मैं चाहूंगा कि Supreme Court के वरिष्ठजन बैठें, मंथन करें कि भई यह Tribunal नाम की व्यवस्था से सचमुच में प्रक्रियाएं तेज हो रही है, नहीं हो रही है, न्याय मिल रहा ,है नहीं मिल रहा है कि और एक Barrier खड़ा हो रहा है। एक बार देखा जाए कि इतनी Tribunal की जरूरत है या नहीं है, क्योंकि फिर Tribunal है तो बाकी तो Budget वहीं चला जाता है। शायद Tribunal का Budget Court को चला जाए तो Court की ताकत बढ़ जाएगी, इतना Budget Tribunal में जा रहा है। हो सकता है कि हम इन चीजों को एक बार देखना चाहिए और तू-तू, मैं-मैं के रूप में नहीं है। अपनेपन के भाव से, साथ मिलकर करने के भाव से इसको एक बार देखने की आवश्यकता है।
यहां पर काफी चीजों का उल्लेख हुआ है इसलिए मैं इन सारी बातों में नहीं जाता हूं, लेकिन हम जिस महान परंपरा में पले-बढ़े हैं उन महान परंपरा में कानून और न्याय इन दो मुख्यधाराओं को कभी compromise नहीं कर सकते वरना समाज और व्यवस्था चल नहीं सकती। कानून और न्याय दोनों की ओर जाना है, लेकिन अब जगत बदलता जा रहा है। पहले के समय में जितने हम चीजों को Handle करते थे, उससे रूप बदल गए। अब criminal offenses उसकी तुलना में economic offenses बढ़ रहे हैं। अब हमारी Expertise उस ओर जाए ऐसी आवश्यकता हो गई है। दुनिया Cyber crime में आ रही है। cyber crime की कोई सीमा नहीं है, वे Global Community है। हमारे अपने कानूनों को हमने उस प्रकार से नये विधा के साथ तैयार करना पड़ेगा। हमारे लोगों को भी उस प्रकार से तैयार करना पड़ेगा। हमने कभी सोचा भी नहीं होगा आने वाले दिनों में Maritime law एक बहुत बड़ा कारण बनने वाला है। Maritime Security को लेकर के Issue बनने वाले हैं। यानी बदलते हुए युग में उन नए-नए challenges और मैं मानता हूं कि शायद 20-25 साल के बाद Space Related Law के बीच स्थिति पैदा हो जाएगी। इस Space पर किसका कब्जा है, किसका नहीं। International court के दायरे में आ जाएगा यह दिन आने वाले हैं। इसका मतलब अपने आप को हमें सजग करना होगा। आज कानूनी न्याय प्रक्रिया के अंदर Forensic Science एक बहुत बड़ा Role play कर सकता है। लेकिन हमारे पास न Bar के पास न Bench के पास, उसका scientific knowledge अभी तक.. क्योंकि उस पीढ़ी के पास यह था नहीं।
मैंने एक प्रयास जब गुजरात में था तो हमने गुजरात में एक Forensic Science university बनाई थी और दुनिया में एकमात्र Forensic Science university है और वो गुजरात में है। बाकी जगह पर colleges भी है Forensic Science के Department हुआ करते हैं, तो Forensic Science University में Judiciary के लोगों को हमने replace की थी और गुजरात high court के judges ने मेरी मदद की थी और करीब-करीब सभी district judges का Forensic Science University का दो-दो दिन का courses हुआ था। क्योंकि यह एक ऐसा विज्ञान develop हो रहा है जो आने वाले दिनों में judicial process के अंदर एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण role play करने वाला है। हम उस बात में कैसे ध्यान दें। हम उसमें Forensic Science की जानकारियों के लिए क्या व्यवस्था करें, तब जाकर के आने वाले दिनों में न्याय की प्रक्रिया में Technology और विज्ञान का भी role किस प्रकार से उपयोग में हो उस पर हमें सोचने की आवश्यकता बनने वाली है। हमारी law universities के student के लिए भी यह कैसे हो।
एक और समस्या जो हम अनुभव कर रहे हैं, जनता ने हमको चुनकर के भेजा है कानून बनाने के लिए लेकिन हमारा काफी समय और कामों में जाता है। संसद में हम क्या करते हैं आपका मालूम है और अनुभव यह आ रहा है कि जो Act के drafts, drafting है कानून का यह सारी pendency के मूड में एक वो भी कारण है कि कानून बनाने में, उसकी शब्द रचना में कुछ न कुछ ऐसी कमी रह जाती है कि ultimately वो न्यायपालिका के पास जाकर उसके interpretation में सालों लग जाते हैं और तब तक कई निर्णय हो जाते हैं फिर बेकार हो जाते हैं। जब तक हमारी law universities वगैरह में drafting के लिए हम proper manpower तैयार नहीं करेंगे और कानून बनाते समय ही हम इस पर care नहीं करेंगे तो हो सकता है कि समयाएं हमारी बढ़ती जाएगी। कोई हम ऋषिमुनि तो है नहीं कि एकदम से Zero defect वाला कानून बना पाएंगे। लेकिन minimum grey area हो वो दिशा में तो प्रयास करे। यह हमारे सामने बहुत बड़ा challenge है। और मैंने अनुभव किया है कि इस प्रकार का Man Power हमें उपलब्ध नहीं होता है। आने वाले दिनों में इस काम को कैसे किया जाए। यह एक आवश्यक काम है जिसको कभी न कभी हमकों करना होगा। और विशेषकर के वो हमारी जिम्मेदारी है हम अगर इस काम को ठीक तरह से करेंगे तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में कानून जितना अच्छा होगा और संविधान के सारी मर्यादाओं के पालन करते हुए बनेगा तो मैं नहीं मानता हूं कि कानून के कारण समस्याएं पैदा हुई।
दूसरा हमारे देश में यह भी विषय आ गया कि भई हर चीज के लिए कानून बनाओ। मैं मानता हूं कि संविधान अपने आप में हर काम करने के लिए बहुत सारी हमारी व्यवस्थाएं देता है, लेकिन एक बन गया है और मेरे मन में विचार आया है कि मैं कानूनों को खत्म करता चलू। इतना बोझ बन गया है जी, मैंने एक कमिटी बनाई है। उस कमिटी में मेरी कोशिश है कि तुम कानून खत्म करो अभी अभी मैंने सात सौ कानून खत्म करने के लिए तो कैबिनेट से approve ले लिया। लेकिन अभी-अभी मेरे सामने नजर में 1700 कानून आए। one thousand seven hundred और मेरा एक सपना था मैं per day एक कानून खत्म करूं। 5 साल के मेरे Tenure में per day एक कानून खत्म करने का यह सपना मैं पूरा करूंगा। यह कानूनों के जंजाल में हमारा पूरा न्याय तंत्र फंसा पड़ा है और यह जिम्मेवारी executives की है कि वो इसको ठीक से चिंता करे और मैं तो राज्यों को भी कहूंगा आपके यहां भी एक छोटी-छोटी टीम बैठाकर के जितने बेफिजूल कानून है उसको निकालिए। जितना सरलीकरण हम लाएंगे सामान्य मानव को खुद को समझ आएगा कि यह हो सकता है या नहीं हो सकता है और व्यक्ति को अगर समझ आता है तो सामान्य नागरिक कानून तोड़ने के स्वभाव का नहीं होता है। वो कानून के साथ चलने के लिए स्वभाव का होता है। लेकिन उसको कानून के साथ चलने के लिए सुविधा पैदा करना यह हम सबका दायित्व है। उन दायित्वों को हम पूरा करेंगे तो हो सकता है जो बोझिल माहौल है, उस बोझिल माहौल में से हम काफी एक मुक्ति का सांस ले सकते हैं और यह मुक्ति का सांस भी एक नई आस्था को उजागर कर सकता है, नई आस्था को जन्म दे सकता है और उस दिशा में हमारा प्रयास रहे। यही मेरे मन में कुछ विचार है। हम आने वाले दिशा में उसको करे।
जहां तक राजनीतिक जीवन में बेठे हैं मेरे जैसे लोग हैं, चाहे हम शासन व्यवस्था में हो, हमारे संविधान ने तो हमारे लिए मर्यादाएं तय की है, लेकिन हमारे शास्त्रों ने भी हमारे लिए मर्यादाएं तय की हैं। अगर हम कहें, अगर हमारे उपनिषद की तरफ नजर करे तो हमारी उपनिषद कहती है शस्त्रय शत्रम यत: धर्म: ,शस्त्रय शत्रम यत: धर्मस्य, यानी कानून नरेशों का भी सम्राट होता है। राजा का भी राजा होता है।
और इसलिए आज अगर शासन में बैठा हुआ कितना ही ओजस्वी तेजस्वी व्यक्ति क्यों न हो लेकिन कानून उससे बड़ा होता है। इस मूलमंत्र को लेकर के चलना। चाहे हम किसी पद पर बैठे हो तो भी हमारी जिम्मेवारी बनती है और उसको हमें करना पड़ेगा और महाभारत के अंदर भीष्म ने एक बात कही है भीष्म ने वो बात कही है वो शायद समाज जीवन को चलाने के लिए उसकी अपनी एक ताकत है और महाभारत में भीष्म इस बात का उल्लेख करते हुए कहते हैं, धर्मन: प्रजा: सर्वा: रक्षन्ति स्म: परस्परम्। कानून के प्रति सम्मान की भावना रखना ही वो मुख्य शक्ति है जो समाज को एकजुट बनाए रखती है। देश की एकता और अखंडता के लिए यह मूल मंत्र जो हमें सहस्त्र वर्षों से प्राप्त हुए हैं, उन संस्कारों को लेकर के हम चलेंगे। हम बहुत कुछ कर सकते हैं।
मैं फिर एक बार...आप सबने मुझे आकर के आप सबसे बात करने का अवसर दिया मैं आपका आभारी हूं। मुझे विश्वास है, मैं कागजी कार्रवाई थोड़ी कम करने वाला इंसान हूं, ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं तो जो मन में आया वो बोला है और मैं नहीं चाहूंगा कि आप उसको judicial तराजू से देखें, एक सामान्य नागरिक के मन के भाव है उसी प्रकार से देखना और उसमें से कुछ अच्छा है तो उसको आगे बढ़ाना नहीं है, तो मुझे वापस करना।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Courtesy: pib.nic.in
मैं इस फोरम से काफी परिचित हूं, लेकिन पहले मैं वहां बैठता था, आज मैं यहां बैठा हूं, और वहां जब बैठता था, तो एक छोटे कमरे में मुख्यमंत्री और राज्य High Court के chief justice के बीच में एक छोटे फोरम में बैठते थे, Media नहीं होता था, Camera नहीं होता था, बड़ी खुलकर के बात होती थी और मेरी भी छवि ऐसी थी कि मैं जरा थोड़ा खुलकर के बोलता था। लेकिन अब शायद मैं इतना बोल पाऊंगा कि नहीं, मुझे पता नहीं।
लेकिन यह भी मैं मानता हूं कि मैं काफी खुलकर के बोलता था फिर भी मैं कह सकता हूं कि मैं बहुत कुछ बोलने से डरता था। और शायद यहां भी जो मुख्यमंत्री हैं, उनके मन में भी यह रहता होगा, कि भई हम कहे या न कहे, हमारी कठिनाईयां बताएं या न बताएं और इस स्थिति का मैंने अनुभव किया हुआ है और आज मैं यहां बैठा हूं तब मैं आवश्यक मानता हूं इन दोनों मुख्यधाराओं के बीच में हमारी संवादिता कैसे बढ़े, खुलापन कैसे आए, एक-दूसरे को मजबूती कैसे दें, जो मजबूती भारत की मजबूती के लिए हो। अगर हम इन चीजों को पूरा कर सकते हैं, तो हम इस देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। मैं उन विषयों को स्पर्श करना नहीं चाहता हूं, जो सामान्य तौर पर इस फोरम में हर बार चर्चा में रहे हैं। ज्यादातर रहा है चर्चा में विषय Pendency का। सबरवाल जी साहब थे, लाहौटी साहब थे, बालकृष्ण साहब थे, इन सबके कालखंड में मैं यह सुनता आया हूं। और आज भी उसकी चर्चा हो रही है। पूर्व प्रधानमंत्रियों के भाषण देखेंगे तो उसमें भी इस बात का जिक्र है। दूसरा विषय है हर किसी ने हर फोरम में भ्रष्टाचार के प्रति चिंता जताई है और इसलिए मुझे उसमें अब नया कुछ जोड़ना नहीं है और इसलिए मैं उस विषय को स्पर्श नहीं करता हूं। हर कोई इसकी चिंता कर रहा है, लेकिन समाधान हम अभी तक नहीं ढूंढ पाएं हैं, हो सकता है आज के फोरम की मीटिंग के बाद इस मंथन से भी हो सकता है सारी चीजों के रास्ते निकलेंगे।
लेकिन मुझे हमेशा यह बात ध्यान में आती है कि हम सब एक प्रकार के समान मनुष्य जीव है, अलग-अलग जिम्मेवारियां हम निभा रहे हैं। अलग-अलग कामों को अपनी योग्यता, क्षमता और संजोग के अनुसार हरेक को मिला है। लेकिन जो न्याय क्षेत्र में है, उनका वैसा नहीं है। वो भले हरेक के बीच में से आए है, हम जैसे लोगों के बीच में से आए हैं, लेकिन ईश्वर ने उनको Divine काम के लिए पसंद किया है। आपके पास जो काम है वो एक Divine काम है। आपके पास जो काम है, जो ईश्वर आपके माध्यम से करवाना चाहता है और इसलिए हम लोगों के पास जो काम है और देश के और जो सवा सौ करोड़ नागरिक के पास जो काम है, उससे आपका काम भिन्न है। और इसलिए आपकी जिम्मेवारियां भी बहुत हैं और देश की आपसे अपेक्षाएं भी बहुत है और सामान्य नागरिक की सर्वाधिक अपेक्षाएं हैं क्योंकि लेकिनउसको लगता है कि मैं भगवान के पास तो नहीं पहुंच पाता हूं, लेकिन एक जगह है जहां मेरा कुछ होगा। उसके लिए भगवान के पास नहीं पहुंच पाता हूं तो कहां पहुंचु, तो वो आपकी तरफ देखता है और उस अर्थ में कितना बड़ा Divine काम आपके पास है और मुझे विश्वास है कि आप जहां बैठे हैं, वहां हर पल उसी बात को स्मरण रखते हुए काम करते हैं और यह भाव किताबों में पढ़ाया गया नहीं है सामान्य नागरिक को। इस Institute ने अपने व्यवहार के कारण, अपनी परंपरा के कारण, अपने चरित्र के कारण सामान्य मानव के मन में यह आस्था पैदा की है। यह आस्था Inject की हुई आस्था नहीं है। यह Evolve हुई है और जब Evolve हुई है आस्था, तो उसकी ताकत भी बहुत ज्यादा होती है और इसलिए मुझे विश्वास है कि इस महान परंपरा को हम और अधिक उजागर कैसे करें और अधिक ओजस्वी, तेजस्वी कैसे बनाएं, यह हमारा दायित्व है।
अभी दत्तू साहब कह रहे थे Quality Man Power के लिए। आज तो हम भाग्यवान है कि आज हमारे पास इस क्षेत्र में जो Man Power है, उसके लिए हम गर्व का अनुभव करते हैं। लेकिन हमारा यह भी दायित्व है कि आने वाली पीढि़यों में कैसा Man Power इस क्षेत्र में आएगा और इसलिए हमारी जितनी चिंता Infrastructure को लेकर के है, जितनी चिंता Digital Form में, आधुनिक Technology के Form अपनी इस व्यवस्था को ढ़ालने की है, उससे अधिक हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि हम आने वाली पीढि़यों को तैयार के लिए इस field के लिए Human Resource development का हमारा Mechanism क्या होगा। उत्तम-से-उत्तम Breed, Law Faculty में कैसे आए। उत्तम-से-उत्तम Breed, Judiciary में कैसे जाए। और इसलिए हमारे इस काम के लिए जो Institutions हैं राज्य सरकारों की सर्वश्रेष्ठ जिम्मेवारी है कि हमारी Law Collages हो, Law Universities उसको हम किस प्रकार से समयानुकूल और भविष्य को ध्यान में रखकर के कैसे तैयार करें। और जितनी बड़ी मात्रा में हम इस क्षेत्र को बल देंगे, हमारी बहुत सारी आवश्यकताओं की पूर्ति होगी।
जब मैं मुख्यमंत्री था यहां बैठता था सामने। एक बार हमारी मीटिंग में एक विषय आया था, Pendency की चर्चा हो रही थी। एक High Court Judge ने जो Reporting किया वो कम से कम मुझे तो चौंकाने वाला था, उन्होंने कहा हमारी Court तो सप्ताह में दो-तीन दिन चलती है और चलती है वो भी दो-तीन घंटे चलती है, तो बोले हम Pendency कहां से कर सकते हैं। तो ऐसे ही मेरा मन कर गया कि पुछुँ तो सही क्या बात है यह? तो बोले नहीं कुछ कारण नहीं है लेकिन जो Building में हम बैठते हैं, उसमें उजाला नहीं है और बिजली आती नहीं है। आप कल्पना कर सकते हैं हम न्यायपालिका को बार-बार पूछते तो हैं कि भई Pendency क्यों है लेकिन कोई तो सोचो कि बिजली तक मुहैया नहीं है तो फिर वो Court कितने घंटे चलेगी। कितने दिन चलेगी, न्याय प्रक्रिया बढेगी कैसे। और इसलिए सारी जिम्मेवारियां एक एकतरफा नहीं है। और फिर कभी यह भी पता चलता है कि इसमें बिजली क्यों नहीं है, तो बोले कोई Five Star activist court में चला गया था तो वो Stay ले आया था तो वहां वो खम्भा डालने मना है। अब बताइये कहां जाए, बात कहां जाकर के रूकती है? और इसलिए हम एक comprehensive एक Integrated approach के साथ, सभी ईकाईयां मिलकर के सही दिशा में एक लक्ष्य निर्धारित करके चलेंगे, तो इन चीजों को पार करना कठिन नहीं है। Digital India भारत सरकार का एक बहुत बड़ा Mission का है। यह Digital India में मेरा अनुभव भी कहता है हम जितना जल्दी Technology का उपयोग हमारी न्यायिक व्यवस्थाओं में लाएंगे हमारी सुविधा बहुत बढ़ेगी, हमारी Qualitative change आएगा, हमारे काम में और आवश्यकता है Qualitative change की। कोई जमाना था जब Reference ढूंढना है तो 10 ग्रंथ हाथ लगाने पड़ते थे। आज कोई भी Reference ढूंढना है, just google गुरू के पास चले जाओ। दो मिनट में गुरू जी लेकर के आ जाते हैं। यह सुविधा बड़ी है, इस सुविधा का लाभ जितना तेजी से हम हमारी न्यायिक व्यवस्था की हर चीजें पुराने सारे Judgement वगैरह।
कल मुझे हमारे चंद्रचूड़ साहब मिले थे तो मुझे कह रहे थे कि इलाहबाद में कोई 50 करोड़ Pages already digital हो चुके हैं। बहुत बड़ा काम है, बहुत काम हुआ है। और यह मैं समझता हूं कि जितना तेजी से होगा, उतना आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में Efficiency लाने में बहुत काम आने वाला है। कभी-कभार यह भी लगता है कि देश को सशक्त न्यापालिका चाहिए या समर्थ न्यायपालिका चाहिए। Powerful Judiciary चाहिए या Perfect Judiciary चाहिए। मैं चाहूंगा कि इस फोरम में बैठे हुए सभी महानुभाव अपने-अपने दायरे में चर्चा करे। हम Powerful तो होते चले जा रहे हैं जितनी तेजी से Powerful हो रहे हैं और Powerful होना गलत नहीं है। लेकिन उतनी ही तेजी से Perfect अनिवार्य हो गया है। हमारी Judiciary Powerful हो, हमारी Judiciary Perfect भी हो। हम सशक्त भी हो, हम समर्थ भी हो, और यह आवश्यकता इसलिए है कि सामान्य मानव के लिए यह एक जगह है। मैं उस बिरादरी से हूं, मैं अपने आप को उस बिरादरी से होने के कारण भाग्यवान मानता हूं। भाग्यवान इसलिए मानता हूं कि हम चौबीसों घंटे हमारी scrutiny होती है। हर पल, हमने बायां पैर रखा कि दायां पैर रखा, हमारी बिरादरी की scrutiny होती है और वक्त इतना बदल चुका कि आज से दस साल पहले जो खबर Gossip Column में भी जगह नहीं लेती थी, वो आज Breaking News बन गई है। इतना अंतर आया है, जिसको कभी Gossip Column में भी जगह देने से Editor पचास बार सोचता था इसको Gossip Column में रखूं या न रखूं, वो आज Breaking News बन गया है। और हम चौबीसों घंटे उसकी Scrutiny होती है। उस बिरादरी से मैं हूं मुझे गर्व है, यह Scrutiny होती है मुझे उसका गर्व है। और इसके कारण, और हर पांच साल में जनता में जाकर हिसाब भी देना पड़ता है। यह Institution जिस बिरादरी से हम आते हैं, उसको काफी बदनामी मिली हुई है। लेकिन उसके बावजूद भी मैं आज कह सकता हूं कि इस बिरादरी ने, उस व्यवस्था ने शासक में बैठे राजनेताओं ने भी अपने पर बंधन लाने के लिए इतनी Institutions को जन्म दिया है। कानून उन्होंने खुद ने बनाए हैं। Election Commissions उसकी स्वतंत्रता हम पर बंधन डालती है, लेकिन हमने किया है। RTI हम पर बंधन डालती है, हमने किया है। इतना ही नहीं लोकपाल की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। हम पर बंधन डाल रहा है, हम कर रहे हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि व्यक्ति कितना ही अच्छा क्यों न हो, अगर Institutional Network अच्छा नहीं होगा, तो गिरावट आने की संभावना कभी भी हो सकती है।
और मैं हमेशा मानता हूं कि घर के अंदर मां-बाप पैसे Lock and Key में रखते हैं। क्या चोर से बचने के लिए? Lock and Key चोर के लिए बहुत छोटी चीज होती है। वो तो पूरी तिजोरी उठाकर के ले जा सकता है। मां-बाप घर में Lock and Key इसलिए रखते हैं कि बच्चे की आदत खराब न हो। इसलिए इस व्यवस्था को विकसित करते हैं। हमारे लिए भी आवश्यक है। हम भाग्यवान है कि दुनिया हमें देखती है, हमें डांटती है, हमारी आलोचना करती है, हमारी चमड़ी उधेड़ देती है। आपको वो सौभाग्य नहीं है। आपको न कभी आलोचना सुनने को मिलती है, न कोई आपको, इतना हीं नहीं जिसको सजा हो गई होगी, फांसी पर लटक गया होगा वो भी बाहर आकर बयान देता है कि मुझे न्यायतंत्र में विश्वास है, ऊपर मुझे न्याय मिलेगा। यानी इतनी credibility है इस Institution की। और जब आलोचना असंभव रहती हो, तब इन Inbuilt हमारी अपनी आत्मपरीक्षण की व्यवस्थाएं विकसित करने की समय की मांग है। हम उस प्रकार के Inbuilt Dynamic Mechanism को Develop करें। और जिसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। राजनेताओं का तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इसी faculty के लोग, हम वो क्या करें कि आज अगर हम इस व्यवस्थाओं को विकसित नहीं करेंगे। हम inherent उस DNA को Develop नहीं करेंगे तो जो आस्था जो कि evolve हुई है उसको छोटी-सी भी चोट आ जाएगी। मैं मानता हूं देश को बहुत नुकसान हो जाएगा। हम सरकार बनाने वाले लोग यह गलती करेंगे, तो गलती ठीक करने की जगह है और वो जगह आप है। लेकिन अगर आप गलती करेंगे तो फिर तो इसके सिवा कुछ नहीं बचा है। इसलिए हमें गलती करने का अधिकार नहीं है, लेकिन फिर भी अगर हम गलती करें तो कोई एक जगह है जहां सुधार हो सकेगा। बच जाएंगे, लेकिन अगर आप गलती करेंगे तो कुछ नहीं बचेगा।
और इस अर्थ में मैं एक Divine Power के रूप में आपको देखता हूं और उस Divine Power के रूप में देखता हूं तब हम सब मिलकर के हम मान कर चले हमारी आलोचना नहीं होने वाली है तो हमें ही बार-बार अपने आपकी आलोचना करनी है और यह कठिन काम है, मैं जानता हूं कि यह कठिन काम है। संविधान के दायरे में, नियमों में दायरे में न्याय देना कठिन नहीं है, क्योंकि आपके लिए दो मिनट में दूध का दूध और पानी का पानी कार्य करना ईश्वरदत आपको एक शक्ति होती है, एक तीसरी आंख आपके पास होती है, आप चीजों को देख पाते हैं, क्योंकि आपका विकास वैसा हुआ है, लेकिन Perception और Realty के बीच से खोजने के लिए बड़ी कठिनाई होती है। कभी हमें सोचना होगा कि आज कहीं Five Star activist तो हमारी पूरी Judiciary को Drive तो नहीं कर रहे। क्या एक प्रकार का हऊआ फैला कर के Judiciary को Drive करने का प्रयास नहीं हो रहा है? संविधान के दायरे में न्याय देना मुश्किल नहीं है? लेकिन Perception के माहौल में न्याय देना बहुत कठिन काम हो गया है और इसलिए आज से 15 साल 20 साल पहले Judiciary के लिए जो मुक्ति का आनंद था वो आनंद आज नहीं है। वो भी डरता है कि बाहर तो यह चल रहा है और मैं यह करूंगा तो क्या होगा। यह माहौल बन गया है और तब जाकर के Judiciary को जितनी हिम्मत ज्यादा मिले उसके लिए सभी को प्रयास करना पड़ेगा। चाहे वो सरकार में बैठे हुए लोग हो, चाहे Media में बैठे हुए लोग हो, चाहे Five Star activist की जमात हो। अगर हम इस Institution को ताकत नहीं देंगे तो हम ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे। और इसलिए मैं मानता हूं कि इन चीजों में बदलाव की आवश्यकता है और मुझे विश्वास है कि हम बदलाव ला सकते हैं।
जहां तक Infrastructure का सवाल है मैं स्वभावत: अच्छी व्यवस्थाओं का पक्षकार हूं। Poverty is a virtue इस Philosophy को मैं belong नहीं करता हूं। वरना हम लोग सदियों से यही पढ़ते आए हैं कि एक बेचारा गरीब ब्राह्मण, वहीं से शुरू होता है कि उसके फटे कपड़े थे और उसको सब बड़ा ही तपस्वी और वो मानने की फैशन नहीं है। वक्त बदल चुका है। उत्तम से उत्तम Infrastructure क्यों नहीं होना चाहिए। व्यवस्थाएं उत्तम से उत्तम क्यों नहीं होनी चाहिए और उस दिशा में प्रयास होना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इस सरकार में इस बात की प्राथमिकता है। इस बार भी करीब Nine thousand seven hundred forty nine crore Rupees 14th Finance Commission के कारण सीधे सीधे राज्यों के पास Specifically Earmark करके Judiciary के लिए दिये गये है और मैं राज्यों से आग्रह करूंगा कि वो पैसे कहीं इधर-उधर न जाए, न्यायपालिका के काम में जाए। तो आपने आप जो छोटी-मोटी समस्याएं है अपने आप सुलझ जाएगी।
और मैं आशा करूंगा कि राज्य के मुख्यमंत्री इस बात पर ध्यान देंगे, व्यक्तिगत ध्यान देंगे और यह कैसे हो सके इस बात पर चिंता करेंगे। हम लोगों ने आखिरकर कुछ चीजें हैं, मतलब जिस राज्य से मैं रहा गुजरात में लोक अदालत का सफल प्रयोग मैंने वहां देखा है। और एक बार मैंने हिसाब लगाया था कि 35 पैसे में न्याय मिलता था। Thirty Five Paisa, मैंने कल फिर रात को खाना खाते हुए कुछ Judges से बात हुई तो मुझे लगा कि मैं फिर एक बार Verify कर लूं। तो मैंने रात को ही थोड़ा पूछताछ की तो मुझे पता चला कि 35 पैसा में अब नहीं मिलता है, लेकिन Average 50-55 रुपये तक में न्याय मिल जाता है, खर्च होता है। मैं समझता हूं भारत जैसे देश में यह व्यवस्था बहुत ताकतवर है। हम देखेंगे कि इतनी सारी Pendency है, लेकिन Below Poverty line family के case minimum होंगे जी। यह बड़े-बड़े लोगों के ही case होते है जी, क्योंकि छोटे लोगों को तो वकील भी कहां मिलता है, वो बेचारा कहां जाएगा। और इसलिए गरीब के लिए जो जगह है वो इन छोटी-छोटी व्यवस्थाओं में है। हम इन लोक अदालत Type व्यवस्थाओं को बल दें, उसका Expansion करें, Judiciary के प्रवर्तमान लोग, judiciary के निवृत्त लोग एक ऐसा framework हम विस्तृत करें, अगर गरीब से और मैं देख रहा हूं कि बडे-बड़े मामले भी बैठकर के Solution आ रहा है। हो सकता है कि हम इस काम को करे तो उसकी चिंता हम लोगों को होगी।
एक विषय शायद मेरी बात लाहोटी साहब से हो रही थी। ऐसे ही बातों-बातों में उन्होंने चिंता व्यक्त की थी। इन दिनों जो परिवार टूट रहे हैं, तेजी से परिवार टूट रहे हैं बड़ी वो चिंता व्यक्त कर रहे थे, और यह दौर बढ़ता चला रहा है। हो सकता है कि इस प्रकार की संवाद वाले Institution जितनी family Court develop होगी, भारत जैसे देश में परिवार टूटना हमारे लिए एक बहुत बड़ा कष्टदायक होगा। हम उस वक्त Focus करके सामाजिक व्यवस्थाओं को बचाने में कैसे काम कर सकते हैं। इस पर हम संवदेनाओं को लाकर के उन चिंताओं को कैसे बढ़ा सकते हैं। अगर गरीब को न्याय देने के लिए अगर लोक अदालत है, तो परिवार को न्याय देने के लिए family अदालत है। खासकर के नारीशक्ति के कल्याण के लिए यह वयस्थाएं बहुत ताकतवर बनी है। उसको हम और अधिक आधुनिक कैसे बनाएं, आधुनिक Speedy कैसे बनाए और उसमें एक विश्वास बना हुआ है। वहां जाने वाले व्यक्ति को लगता है कि ठीक है भई चलो दो कदम मैं चला दो कदम तुम चलो रास्ता निकल गया छोड़ो अब नहीं जाना है अब अपना काम करो। यह मूड बन रहा है। और मैं मानता हूं इस मूड का और अधिक सार्थक बनने का हमें प्रयास करना चाहिए और वो प्रयास हम करेंगे, तो अवश्य ही लाभ होगा ऐसा मुझे लगता है।
सरकार में भी व्यवस्थाएं विकसित हुई कि भई हर चीज court में चली जाती है चलो inbuilt कोई ही Arrangement करे उसमें से Tribunals पैदा हुई। Tribunals को भी ज्यादातर lead करते हैं निवृत Judge, लेकिन मैंने आकर के देखा है कि मैं बहुत निराश हो गया हूँ। शायद आज भारत सरकार में, मुझे लगता है करीब-करीब हम सौ tribunals की ओर पहुंच रहे हैं और एक-एक Ministry की तीन-तीन-चार-चार tribunals बन गई हैं। और Tribunals का disposal तो और चिंताजनक है। मैं चाहूंगा कि Supreme Court के वरिष्ठजन बैठें, मंथन करें कि भई यह Tribunal नाम की व्यवस्था से सचमुच में प्रक्रियाएं तेज हो रही है, नहीं हो रही है, न्याय मिल रहा ,है नहीं मिल रहा है कि और एक Barrier खड़ा हो रहा है। एक बार देखा जाए कि इतनी Tribunal की जरूरत है या नहीं है, क्योंकि फिर Tribunal है तो बाकी तो Budget वहीं चला जाता है। शायद Tribunal का Budget Court को चला जाए तो Court की ताकत बढ़ जाएगी, इतना Budget Tribunal में जा रहा है। हो सकता है कि हम इन चीजों को एक बार देखना चाहिए और तू-तू, मैं-मैं के रूप में नहीं है। अपनेपन के भाव से, साथ मिलकर करने के भाव से इसको एक बार देखने की आवश्यकता है।
यहां पर काफी चीजों का उल्लेख हुआ है इसलिए मैं इन सारी बातों में नहीं जाता हूं, लेकिन हम जिस महान परंपरा में पले-बढ़े हैं उन महान परंपरा में कानून और न्याय इन दो मुख्यधाराओं को कभी compromise नहीं कर सकते वरना समाज और व्यवस्था चल नहीं सकती। कानून और न्याय दोनों की ओर जाना है, लेकिन अब जगत बदलता जा रहा है। पहले के समय में जितने हम चीजों को Handle करते थे, उससे रूप बदल गए। अब criminal offenses उसकी तुलना में economic offenses बढ़ रहे हैं। अब हमारी Expertise उस ओर जाए ऐसी आवश्यकता हो गई है। दुनिया Cyber crime में आ रही है। cyber crime की कोई सीमा नहीं है, वे Global Community है। हमारे अपने कानूनों को हमने उस प्रकार से नये विधा के साथ तैयार करना पड़ेगा। हमारे लोगों को भी उस प्रकार से तैयार करना पड़ेगा। हमने कभी सोचा भी नहीं होगा आने वाले दिनों में Maritime law एक बहुत बड़ा कारण बनने वाला है। Maritime Security को लेकर के Issue बनने वाले हैं। यानी बदलते हुए युग में उन नए-नए challenges और मैं मानता हूं कि शायद 20-25 साल के बाद Space Related Law के बीच स्थिति पैदा हो जाएगी। इस Space पर किसका कब्जा है, किसका नहीं। International court के दायरे में आ जाएगा यह दिन आने वाले हैं। इसका मतलब अपने आप को हमें सजग करना होगा। आज कानूनी न्याय प्रक्रिया के अंदर Forensic Science एक बहुत बड़ा Role play कर सकता है। लेकिन हमारे पास न Bar के पास न Bench के पास, उसका scientific knowledge अभी तक.. क्योंकि उस पीढ़ी के पास यह था नहीं।
मैंने एक प्रयास जब गुजरात में था तो हमने गुजरात में एक Forensic Science university बनाई थी और दुनिया में एकमात्र Forensic Science university है और वो गुजरात में है। बाकी जगह पर colleges भी है Forensic Science के Department हुआ करते हैं, तो Forensic Science University में Judiciary के लोगों को हमने replace की थी और गुजरात high court के judges ने मेरी मदद की थी और करीब-करीब सभी district judges का Forensic Science University का दो-दो दिन का courses हुआ था। क्योंकि यह एक ऐसा विज्ञान develop हो रहा है जो आने वाले दिनों में judicial process के अंदर एक बहुत बड़ा महत्वपूर्ण role play करने वाला है। हम उस बात में कैसे ध्यान दें। हम उसमें Forensic Science की जानकारियों के लिए क्या व्यवस्था करें, तब जाकर के आने वाले दिनों में न्याय की प्रक्रिया में Technology और विज्ञान का भी role किस प्रकार से उपयोग में हो उस पर हमें सोचने की आवश्यकता बनने वाली है। हमारी law universities के student के लिए भी यह कैसे हो।
एक और समस्या जो हम अनुभव कर रहे हैं, जनता ने हमको चुनकर के भेजा है कानून बनाने के लिए लेकिन हमारा काफी समय और कामों में जाता है। संसद में हम क्या करते हैं आपका मालूम है और अनुभव यह आ रहा है कि जो Act के drafts, drafting है कानून का यह सारी pendency के मूड में एक वो भी कारण है कि कानून बनाने में, उसकी शब्द रचना में कुछ न कुछ ऐसी कमी रह जाती है कि ultimately वो न्यायपालिका के पास जाकर उसके interpretation में सालों लग जाते हैं और तब तक कई निर्णय हो जाते हैं फिर बेकार हो जाते हैं। जब तक हमारी law universities वगैरह में drafting के लिए हम proper manpower तैयार नहीं करेंगे और कानून बनाते समय ही हम इस पर care नहीं करेंगे तो हो सकता है कि समयाएं हमारी बढ़ती जाएगी। कोई हम ऋषिमुनि तो है नहीं कि एकदम से Zero defect वाला कानून बना पाएंगे। लेकिन minimum grey area हो वो दिशा में तो प्रयास करे। यह हमारे सामने बहुत बड़ा challenge है। और मैंने अनुभव किया है कि इस प्रकार का Man Power हमें उपलब्ध नहीं होता है। आने वाले दिनों में इस काम को कैसे किया जाए। यह एक आवश्यक काम है जिसको कभी न कभी हमकों करना होगा। और विशेषकर के वो हमारी जिम्मेदारी है हम अगर इस काम को ठीक तरह से करेंगे तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में कानून जितना अच्छा होगा और संविधान के सारी मर्यादाओं के पालन करते हुए बनेगा तो मैं नहीं मानता हूं कि कानून के कारण समस्याएं पैदा हुई।
दूसरा हमारे देश में यह भी विषय आ गया कि भई हर चीज के लिए कानून बनाओ। मैं मानता हूं कि संविधान अपने आप में हर काम करने के लिए बहुत सारी हमारी व्यवस्थाएं देता है, लेकिन एक बन गया है और मेरे मन में विचार आया है कि मैं कानूनों को खत्म करता चलू। इतना बोझ बन गया है जी, मैंने एक कमिटी बनाई है। उस कमिटी में मेरी कोशिश है कि तुम कानून खत्म करो अभी अभी मैंने सात सौ कानून खत्म करने के लिए तो कैबिनेट से approve ले लिया। लेकिन अभी-अभी मेरे सामने नजर में 1700 कानून आए। one thousand seven hundred और मेरा एक सपना था मैं per day एक कानून खत्म करूं। 5 साल के मेरे Tenure में per day एक कानून खत्म करने का यह सपना मैं पूरा करूंगा। यह कानूनों के जंजाल में हमारा पूरा न्याय तंत्र फंसा पड़ा है और यह जिम्मेवारी executives की है कि वो इसको ठीक से चिंता करे और मैं तो राज्यों को भी कहूंगा आपके यहां भी एक छोटी-छोटी टीम बैठाकर के जितने बेफिजूल कानून है उसको निकालिए। जितना सरलीकरण हम लाएंगे सामान्य मानव को खुद को समझ आएगा कि यह हो सकता है या नहीं हो सकता है और व्यक्ति को अगर समझ आता है तो सामान्य नागरिक कानून तोड़ने के स्वभाव का नहीं होता है। वो कानून के साथ चलने के लिए स्वभाव का होता है। लेकिन उसको कानून के साथ चलने के लिए सुविधा पैदा करना यह हम सबका दायित्व है। उन दायित्वों को हम पूरा करेंगे तो हो सकता है जो बोझिल माहौल है, उस बोझिल माहौल में से हम काफी एक मुक्ति का सांस ले सकते हैं और यह मुक्ति का सांस भी एक नई आस्था को उजागर कर सकता है, नई आस्था को जन्म दे सकता है और उस दिशा में हमारा प्रयास रहे। यही मेरे मन में कुछ विचार है। हम आने वाले दिशा में उसको करे।
जहां तक राजनीतिक जीवन में बेठे हैं मेरे जैसे लोग हैं, चाहे हम शासन व्यवस्था में हो, हमारे संविधान ने तो हमारे लिए मर्यादाएं तय की है, लेकिन हमारे शास्त्रों ने भी हमारे लिए मर्यादाएं तय की हैं। अगर हम कहें, अगर हमारे उपनिषद की तरफ नजर करे तो हमारी उपनिषद कहती है शस्त्रय शत्रम यत: धर्म: ,शस्त्रय शत्रम यत: धर्मस्य, यानी कानून नरेशों का भी सम्राट होता है। राजा का भी राजा होता है।
और इसलिए आज अगर शासन में बैठा हुआ कितना ही ओजस्वी तेजस्वी व्यक्ति क्यों न हो लेकिन कानून उससे बड़ा होता है। इस मूलमंत्र को लेकर के चलना। चाहे हम किसी पद पर बैठे हो तो भी हमारी जिम्मेवारी बनती है और उसको हमें करना पड़ेगा और महाभारत के अंदर भीष्म ने एक बात कही है भीष्म ने वो बात कही है वो शायद समाज जीवन को चलाने के लिए उसकी अपनी एक ताकत है और महाभारत में भीष्म इस बात का उल्लेख करते हुए कहते हैं, धर्मन: प्रजा: सर्वा: रक्षन्ति स्म: परस्परम्। कानून के प्रति सम्मान की भावना रखना ही वो मुख्य शक्ति है जो समाज को एकजुट बनाए रखती है। देश की एकता और अखंडता के लिए यह मूल मंत्र जो हमें सहस्त्र वर्षों से प्राप्त हुए हैं, उन संस्कारों को लेकर के हम चलेंगे। हम बहुत कुछ कर सकते हैं।
मैं फिर एक बार...आप सबने मुझे आकर के आप सबसे बात करने का अवसर दिया मैं आपका आभारी हूं। मुझे विश्वास है, मैं कागजी कार्रवाई थोड़ी कम करने वाला इंसान हूं, ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं तो जो मन में आया वो बोला है और मैं नहीं चाहूंगा कि आप उसको judicial तराजू से देखें, एक सामान्य नागरिक के मन के भाव है उसी प्रकार से देखना और उसमें से कुछ अच्छा है तो उसको आगे बढ़ाना नहीं है, तो मुझे वापस करना।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Courtesy: pib.nic.in
1 comment:
HISTORIC
Post a Comment