सर जगन्नाथ जी, मारीशस सरकार के मंत्रीपरिषद के सभी महानुभाव, सभी वरिष्ठ नागरिक भाईयों और बहनों,
सर जगन्नाथ जी ने कहा कि छोटे भारत में भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत करता हूं। ये लघू भारत शब्द सूनते ही पूरे तन मन में एक वाइब्रेशन की अनुभूति होती है, एक अपनेपन की अनुभूति होती है। एक प्रकार से 1.2 मिलियन के देश को 1.2 बिलियन का देश गले लगाने आया है। ये अपने आप में हमारी सांस्कृतिक विरासत है। हम कल्पना कर सकते हैं कि सौ डेढ़ सौ साल पहले हमारे पूर्वज यहां श्रमिक के रूप में आए और साथ में तुलसीदासकृत रामायण, हनुमान चालीसा और हिंदी भाषा को ले करके आए। इन सौ डेढ़ सौ साल में अगर ये तीन चीज़ें न होती और बाकी सब होता, तो आप कहां होते और मैं कहां होता, इसका हम अंदाज कर सकते हैं। इसे हमने बचाए भी रखा है, बनाए भी रखा है और जोड़ करके भी रखा है।
1975 में, जब नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ तब श्री शिवसागर जी वहां आए थे और आपने उस समय प्रस्ताव रखा था, एक विश्व हिंदी सचिवालय होना चाहिए। 1975 में इस विचार को स्वीकार किया गया था, लेकिन उस बात को आगे बढ़ते-बढ़ते सालों बीत गए। और मैं मानता हूं कि आज विश्व सचिवालय की एक नई इमारत का शिलान्यास हो रहा है, तो उसकी खुशी विश्वभर में फैले हिंदी प्रेमियों को तो होगी ही होगी, लेकिन मुझे विश्वास है कि सर शिवसागर जी जहां कहीं भी होंगे, उनको अति प्रसन्नता होगी कि उनके सपनों का यह काम आज साकार हो रहा है।
जब अटल जी की सरकार थी तो 1975 के विचार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास हुआ। डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी यहां आए थे। फिर बाद में गाड़ी में रूकावट आ गई और शायद ये काम मेरे ही भाग्य में लिखा था। लेकिन मैं चाहूंगा कि अब ज्यादा देर न हो। आज जिसकी शुरूआत हो, अभी तय कर लें कि इतनी तारीख को उसका उद्घाटन हो जाए।
मॉरीशस ने हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है। बहुत से सार्क देशों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम रहा है। अनेक भाषा भाषी लोगों ने हिंदी भाषा को सीखा है। दूनिया की अनेक युनिवर्सिटीज़ में हिंदी सिखाई जाती है। कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद हुआ है। कई भाषाओं की किताबों का अनुवाद हुआ है। लेकिन जैसे मूर्धन्य साहित्यकार दिनकर जी कहते थे कि मॉरीशस अकेला एक ऐसा देश है जिसका, उसका अपना हिेंदी साहित्य है। ये मैं मानता हूं, बहुत बड़ी बात है।
अभी 2015 का प्रवासी भारतीय दिवस हुआ। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस में कार्यक्रम रखा गया था कि प्रवासी भारतीयों के द्वारा जो साहित्य सर्जन हुआ है, उसकी एक प्रदर्शनी लगाई जाए। दूनियाभर में फैले हुए भारतीयों ने जो कुछ भी रचनाएं की हैं, अलग-अलग भाषा में की हैं, उसकी प्रदर्शनी थी। और मैं आज गर्व से कहता हूं कि विश्वभर में फैले हुए भारतीयों के द्वारा लिखे गए साहित्य की इस प्रदर्शनी में डेढ़ सौ से ज्यादा पुस्तकें मॉरीशस की थीं। यानि यहां पर हिंदी भाषा को इतना प्यार किया गया है, उसका इतना लालन-पालन किया गया है, उसको इतना दुलार मिला है, शायद कभी कभी हिंदुस्तान के भी कुछ इलाके होंगे जहां इतना दुलार नहीं मिला होगा जितना मॉरीशस में मिला है।
भाषा की अपनी एक ताकत होती है। भाषा भाव की अभिव्यक्ति का एक माध्यम होता है। जब व्यक्ति अपनी भाषा में कोई बात करता है, तब वो दिमाग से नहीं निकलती है, दिल से निकलती है। किसी और भाषा में जब बात की जाती है तो पहले विचार, दिमाग में ट्रांसलेशन चलता है और फिर प्रकट होता है। सही शब्द का चयन करने के लिए दिमाग पूरी डिक्शनरी छान मारता है और फिर प्रकट होता है। लेकिन, अपनी भाषा भाव की अभिव्यक्ति का बहुत बड़ा माध्यम होती है। जयशंकर राय ने कहा था कि मारीशस की हिंदी.. ये श्रमिकों की भक्ति का जीता जागता सबूत है। ये जयशंकर राय ने कहा था।
और मैं मानता हूं कि मॉरीशस में जो हिंदी साहित्य लिखा गया है, वो कलम से निकलने वाली स्याही से नहीं लिखा गया है। मॉरीशस में जो साहित्य लिखा गया है, उस कलम से, श्रमिकों की पसीने की बूंद से लिखा गया है। मॉरीशस जो हिंदी साहित्य है, उसमें यहां के पसीने की महक है। और वो महक आने वाले दिनों में साहित्य को और नया सामर्थ्य देगी। और जैसा मैंने कहा कि भाव की अभिव्यक्ति .. हर भाषा का भाषातंर संभव नहीं होता है। और भाव का तो असंभव होता है।
जैसे हमारे यहां कहा गया है- "राधिका तूने बांसूरी चुराई।" अब यहां बैठे हुए जो लोग भी हिंदी भाषा को जानते हैं, उन्हें पूरी समझ है कि मैं क्या कह रहा हूं। “राधिके तूने बांसूरी चुराई।“ लेकिन यही बात बहुत बढिया अंग्रेजी़ में मैं ट्रांसलेट करके कहूंगा तो ये कहूंगा कि “Radhika has stolen the flute. Go to police station and report.” भाषा भाव की अभिव्यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्यम होता है। भाषा से अभिव्यक्त होने वाले भाव सामर्थ्य भी देते हैं। हम हमारे प्रधानमंत्री श्री अनिरूद्ध जगन्नाथ जी को जानते हैं। नाम भी बोलते हैं लेकिन हमें पता नहीं होगा शायद कि जगन्नाथ में से ही अंग्रेजी डिक्शनरी में एक शब्द आया है और मूल शब्द वो जगन्नाथ का है.. और अंगेज़ी में शब्द आया है- Juggernaut. यानी ऐसा स्रोत,ऐसी शक्ति का स्रोत जिसे रोका नहीं जा सकता। इस के लिए और अंगेज़ी में शब्द आया है- Juggernaut. ये जगन्नाथ से गया है।
क्योंकि जब पुरी में जगन्नाथ जी यात्रा निकलती है और जो दृश्य होता है, उसमें जो शब्द वहां पहुंचा है। मैं एक बार Russia के उस क्षेत्र में गया जो हिंदूस्तान से सटा हुआ है। वहां के लोगों को tea शब्द पता नहीं है लेकिन चाय पता है। Door मालूम नहीं लेकिन द्वार पता है। कभी कभार ये भी अवसर होता है।
और मैं चाहूंगा कि ये जो हमारा विश्व हिंदी सचिवालय जो बन रहा है, वहां टेक्नॉलॉजी का भी भरपूर उपयोग हो। दूनिया की जितनी भाषाओं में हिंदी ने अपनी जगह बनाई है, किसी न किसी रूप में, पिछले दरवाजे से क्यों न हो, लेकिन पहूंच गई है, उसको भी कभी खोज कर निकालना चाहिए कि हम किस किस रूप में पहुंचे और क्यों स्वीकृति हो गई। विश्व की कई भाषाओं में हमारी भाषा के शब्द पहुंचे हैं। जब ये जानते हैं तो हमें गर्व होता है। ये अपने आप में एक राष्ट्रीय स्वाभिमान का कारण बन जाता है।
विश्व में फैले हुए हिंदी प्रेमियों के लिए ये आज के पल अत्यंत शुभ पल हैं। आज 12 मार्च है, जब मॉरीशस अपना राष्ट्रीय दिवस मना रहा है। मैं मॉरीशस के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ शुभकामनाएं ले करके आया हूं।
आज का वो दिन है, 12 मार्च,1930, जब महात्मा गांधी ने साबरमती के तट से दांडी यात्रा का आरंभ किया था। दांडी यात्रा भारत की आज़ादी के आंदोलन का एक turning point बनी थी। उसी साबरमती के तट से निकला था जिस साबरमती का पानी पीकर मुझे भी तो बड़े होने का सौभाग्य मिला है। आज उसी 12 मार्च को ये अवसर आया है। महात्मा गांधी मॉरीशस आए थे। महात्मा गांधी ने मॉरीशस को भरपूर प्यार दिया था। सौ साल पहल.. महात्मा गांधी से जिनको बहुत प्रेम रहता था, एसे मणिलाल डॉ.. सौ वर्ष पूर्व उन्होंने यहां पर हिंदी अख़बार शुरू किया था.. हिंदुस्तानी। उस अख़बार की यह विशेषता थी.. कि अभी भी जब कुछ लोग भाषाओं के झगड़े करते हैं, लेकिन उस डॉ मणिलाल ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से रास्ता निकाला था। वो हिंदुस्तानी अखबार ऐसा था जिसमें कुछ पेज गुजराती में छपते थे, कुछ हिंदी में छपते थे और कुछ अंग्रेज़ी में छपते थे और एक प्रकार से three language formula वाला वो अख़बार सौ साल पहले निकलता था।
लेकिन वो हिंदुस्तानी अख़बार मॉरीशस के लोगों को जोड़ने का एक बहुत बड़ा माध्यम बना हुआ था। तो महात्मा गांधी के विचारों का प्रभाव उसमें अभिव्यक्त होता था। और स्वदेश प्रेम स्वदेशी भाषा से उजागर हो जाता है। अपनी भाषा से उजागर होता है। भाषा के बंधनों में बंधन वाले हम लोग नहीं हैं। हम तो वो लोग हैं जो सब भाषाओं के अपने गले लगाना चाहते हैं, क्योंकि वही तो समृद्धि का कारण बनता है। अगर अंग्रेजी ने जगन्नाथ को गले नहीं लगाया होता तो juggernaut शब्द पैदा नहीं होता। और इसलिए, भाषा की सम़द्धि भी बांधने से बंधती नहीं है। एक बगीचे से जब हवा चलती है तो हवा उसकी सुगंध को फैलाती जाती है। भाषा की भी वो ताकत होती है कि वो अपने प्रवाह के साथ सदियों तक नई चेतना, नई उर्जा, नया प्राण प्रसारित करती रहती है।
उस अर्थ में आज मेरे लिए बड़ा गर्व का विषय है कि मॉरीशस की धरती पर विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन का निर्माण हो रहा है। भाषा प्रेमियों के लिए, हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए, भारत प्रेमियों के लिए, और महान विरासत जिस भाषा के भीतर नवपल्लवित होती रही है, उस महान विरासत के साथ विश्व को जोड़ने का जो प्रयास हो रहा है, उसको मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और इस अवसर पर मुझे आपके बीच आने का अवसर मिला उसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं।
बहुत बहुत धन्यवाद।
Courtesy: pib.nic.in
सर जगन्नाथ जी ने कहा कि छोटे भारत में भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत करता हूं। ये लघू भारत शब्द सूनते ही पूरे तन मन में एक वाइब्रेशन की अनुभूति होती है, एक अपनेपन की अनुभूति होती है। एक प्रकार से 1.2 मिलियन के देश को 1.2 बिलियन का देश गले लगाने आया है। ये अपने आप में हमारी सांस्कृतिक विरासत है। हम कल्पना कर सकते हैं कि सौ डेढ़ सौ साल पहले हमारे पूर्वज यहां श्रमिक के रूप में आए और साथ में तुलसीदासकृत रामायण, हनुमान चालीसा और हिंदी भाषा को ले करके आए। इन सौ डेढ़ सौ साल में अगर ये तीन चीज़ें न होती और बाकी सब होता, तो आप कहां होते और मैं कहां होता, इसका हम अंदाज कर सकते हैं। इसे हमने बचाए भी रखा है, बनाए भी रखा है और जोड़ करके भी रखा है।
1975 में, जब नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ तब श्री शिवसागर जी वहां आए थे और आपने उस समय प्रस्ताव रखा था, एक विश्व हिंदी सचिवालय होना चाहिए। 1975 में इस विचार को स्वीकार किया गया था, लेकिन उस बात को आगे बढ़ते-बढ़ते सालों बीत गए। और मैं मानता हूं कि आज विश्व सचिवालय की एक नई इमारत का शिलान्यास हो रहा है, तो उसकी खुशी विश्वभर में फैले हिंदी प्रेमियों को तो होगी ही होगी, लेकिन मुझे विश्वास है कि सर शिवसागर जी जहां कहीं भी होंगे, उनको अति प्रसन्नता होगी कि उनके सपनों का यह काम आज साकार हो रहा है।
जब अटल जी की सरकार थी तो 1975 के विचार को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास हुआ। डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी यहां आए थे। फिर बाद में गाड़ी में रूकावट आ गई और शायद ये काम मेरे ही भाग्य में लिखा था। लेकिन मैं चाहूंगा कि अब ज्यादा देर न हो। आज जिसकी शुरूआत हो, अभी तय कर लें कि इतनी तारीख को उसका उद्घाटन हो जाए।
मॉरीशस ने हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की है। बहुत से सार्क देशों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम रहा है। अनेक भाषा भाषी लोगों ने हिंदी भाषा को सीखा है। दूनिया की अनेक युनिवर्सिटीज़ में हिंदी सिखाई जाती है। कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद हुआ है। कई भाषाओं की किताबों का अनुवाद हुआ है। लेकिन जैसे मूर्धन्य साहित्यकार दिनकर जी कहते थे कि मॉरीशस अकेला एक ऐसा देश है जिसका, उसका अपना हिेंदी साहित्य है। ये मैं मानता हूं, बहुत बड़ी बात है।
अभी 2015 का प्रवासी भारतीय दिवस हुआ। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस में कार्यक्रम रखा गया था कि प्रवासी भारतीयों के द्वारा जो साहित्य सर्जन हुआ है, उसकी एक प्रदर्शनी लगाई जाए। दूनियाभर में फैले हुए भारतीयों ने जो कुछ भी रचनाएं की हैं, अलग-अलग भाषा में की हैं, उसकी प्रदर्शनी थी। और मैं आज गर्व से कहता हूं कि विश्वभर में फैले हुए भारतीयों के द्वारा लिखे गए साहित्य की इस प्रदर्शनी में डेढ़ सौ से ज्यादा पुस्तकें मॉरीशस की थीं। यानि यहां पर हिंदी भाषा को इतना प्यार किया गया है, उसका इतना लालन-पालन किया गया है, उसको इतना दुलार मिला है, शायद कभी कभी हिंदुस्तान के भी कुछ इलाके होंगे जहां इतना दुलार नहीं मिला होगा जितना मॉरीशस में मिला है।
भाषा की अपनी एक ताकत होती है। भाषा भाव की अभिव्यक्ति का एक माध्यम होता है। जब व्यक्ति अपनी भाषा में कोई बात करता है, तब वो दिमाग से नहीं निकलती है, दिल से निकलती है। किसी और भाषा में जब बात की जाती है तो पहले विचार, दिमाग में ट्रांसलेशन चलता है और फिर प्रकट होता है। सही शब्द का चयन करने के लिए दिमाग पूरी डिक्शनरी छान मारता है और फिर प्रकट होता है। लेकिन, अपनी भाषा भाव की अभिव्यक्ति का बहुत बड़ा माध्यम होती है। जयशंकर राय ने कहा था कि मारीशस की हिंदी.. ये श्रमिकों की भक्ति का जीता जागता सबूत है। ये जयशंकर राय ने कहा था।
और मैं मानता हूं कि मॉरीशस में जो हिंदी साहित्य लिखा गया है, वो कलम से निकलने वाली स्याही से नहीं लिखा गया है। मॉरीशस में जो साहित्य लिखा गया है, उस कलम से, श्रमिकों की पसीने की बूंद से लिखा गया है। मॉरीशस जो हिंदी साहित्य है, उसमें यहां के पसीने की महक है। और वो महक आने वाले दिनों में साहित्य को और नया सामर्थ्य देगी। और जैसा मैंने कहा कि भाव की अभिव्यक्ति .. हर भाषा का भाषातंर संभव नहीं होता है। और भाव का तो असंभव होता है।
जैसे हमारे यहां कहा गया है- "राधिका तूने बांसूरी चुराई।" अब यहां बैठे हुए जो लोग भी हिंदी भाषा को जानते हैं, उन्हें पूरी समझ है कि मैं क्या कह रहा हूं। “राधिके तूने बांसूरी चुराई।“ लेकिन यही बात बहुत बढिया अंग्रेजी़ में मैं ट्रांसलेट करके कहूंगा तो ये कहूंगा कि “Radhika has stolen the flute. Go to police station and report.” भाषा भाव की अभिव्यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्यम होता है। भाषा से अभिव्यक्त होने वाले भाव सामर्थ्य भी देते हैं। हम हमारे प्रधानमंत्री श्री अनिरूद्ध जगन्नाथ जी को जानते हैं। नाम भी बोलते हैं लेकिन हमें पता नहीं होगा शायद कि जगन्नाथ में से ही अंग्रेजी डिक्शनरी में एक शब्द आया है और मूल शब्द वो जगन्नाथ का है.. और अंगेज़ी में शब्द आया है- Juggernaut. यानी ऐसा स्रोत,ऐसी शक्ति का स्रोत जिसे रोका नहीं जा सकता। इस के लिए और अंगेज़ी में शब्द आया है- Juggernaut. ये जगन्नाथ से गया है।
क्योंकि जब पुरी में जगन्नाथ जी यात्रा निकलती है और जो दृश्य होता है, उसमें जो शब्द वहां पहुंचा है। मैं एक बार Russia के उस क्षेत्र में गया जो हिंदूस्तान से सटा हुआ है। वहां के लोगों को tea शब्द पता नहीं है लेकिन चाय पता है। Door मालूम नहीं लेकिन द्वार पता है। कभी कभार ये भी अवसर होता है।
और मैं चाहूंगा कि ये जो हमारा विश्व हिंदी सचिवालय जो बन रहा है, वहां टेक्नॉलॉजी का भी भरपूर उपयोग हो। दूनिया की जितनी भाषाओं में हिंदी ने अपनी जगह बनाई है, किसी न किसी रूप में, पिछले दरवाजे से क्यों न हो, लेकिन पहूंच गई है, उसको भी कभी खोज कर निकालना चाहिए कि हम किस किस रूप में पहुंचे और क्यों स्वीकृति हो गई। विश्व की कई भाषाओं में हमारी भाषा के शब्द पहुंचे हैं। जब ये जानते हैं तो हमें गर्व होता है। ये अपने आप में एक राष्ट्रीय स्वाभिमान का कारण बन जाता है।
विश्व में फैले हुए हिंदी प्रेमियों के लिए ये आज के पल अत्यंत शुभ पल हैं। आज 12 मार्च है, जब मॉरीशस अपना राष्ट्रीय दिवस मना रहा है। मैं मॉरीशस के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ शुभकामनाएं ले करके आया हूं।
आज का वो दिन है, 12 मार्च,1930, जब महात्मा गांधी ने साबरमती के तट से दांडी यात्रा का आरंभ किया था। दांडी यात्रा भारत की आज़ादी के आंदोलन का एक turning point बनी थी। उसी साबरमती के तट से निकला था जिस साबरमती का पानी पीकर मुझे भी तो बड़े होने का सौभाग्य मिला है। आज उसी 12 मार्च को ये अवसर आया है। महात्मा गांधी मॉरीशस आए थे। महात्मा गांधी ने मॉरीशस को भरपूर प्यार दिया था। सौ साल पहल.. महात्मा गांधी से जिनको बहुत प्रेम रहता था, एसे मणिलाल डॉ.. सौ वर्ष पूर्व उन्होंने यहां पर हिंदी अख़बार शुरू किया था.. हिंदुस्तानी। उस अख़बार की यह विशेषता थी.. कि अभी भी जब कुछ लोग भाषाओं के झगड़े करते हैं, लेकिन उस डॉ मणिलाल ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से रास्ता निकाला था। वो हिंदुस्तानी अखबार ऐसा था जिसमें कुछ पेज गुजराती में छपते थे, कुछ हिंदी में छपते थे और कुछ अंग्रेज़ी में छपते थे और एक प्रकार से three language formula वाला वो अख़बार सौ साल पहले निकलता था।
लेकिन वो हिंदुस्तानी अख़बार मॉरीशस के लोगों को जोड़ने का एक बहुत बड़ा माध्यम बना हुआ था। तो महात्मा गांधी के विचारों का प्रभाव उसमें अभिव्यक्त होता था। और स्वदेश प्रेम स्वदेशी भाषा से उजागर हो जाता है। अपनी भाषा से उजागर होता है। भाषा के बंधनों में बंधन वाले हम लोग नहीं हैं। हम तो वो लोग हैं जो सब भाषाओं के अपने गले लगाना चाहते हैं, क्योंकि वही तो समृद्धि का कारण बनता है। अगर अंग्रेजी ने जगन्नाथ को गले नहीं लगाया होता तो juggernaut शब्द पैदा नहीं होता। और इसलिए, भाषा की सम़द्धि भी बांधने से बंधती नहीं है। एक बगीचे से जब हवा चलती है तो हवा उसकी सुगंध को फैलाती जाती है। भाषा की भी वो ताकत होती है कि वो अपने प्रवाह के साथ सदियों तक नई चेतना, नई उर्जा, नया प्राण प्रसारित करती रहती है।
उस अर्थ में आज मेरे लिए बड़ा गर्व का विषय है कि मॉरीशस की धरती पर विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन का निर्माण हो रहा है। भाषा प्रेमियों के लिए, हिंदी भाषा प्रेमियों के लिए, भारत प्रेमियों के लिए, और महान विरासत जिस भाषा के भीतर नवपल्लवित होती रही है, उस महान विरासत के साथ विश्व को जोड़ने का जो प्रयास हो रहा है, उसको मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और इस अवसर पर मुझे आपके बीच आने का अवसर मिला उसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं।
बहुत बहुत धन्यवाद।
Courtesy: pib.nic.in
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