Thursday, 3 October 2019

उपराष्ट्रपति ने देश की सांस्कृतिक, भाषाई और भावनात्मक एकता को मजबूत बनाने के लिए भारतीय भाषाओं के बीच निरंतर बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान का आह्वान किया;

सभी भाषाएँ महत्वपूर्ण हैं; हमें सभी भाषाओं का पूरा सम्मान करना चाहिए: उपराष्ट्रपति

न तो कोई भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का विरोध होना चाहिए;

उन्‍होंने राज्यसभा की हिंदी सलाहाकर समिति की 8वीं बैठक की अध्यक्षता की

उपराष्‍ट्रपति और राज्‍यसभा के सभापति श्री एम वेंकैया नायडू ने देश की सांस्कृतिक, भाषाई और भावनात्मक एकता को मजबूत बनाने के लिए भारतीय भाषाओं के बीच निरंतर बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान का आह्वान किया। राज्‍यसभा की हिंदी सलाहकार समिति की आज हैदराबाद में आयोजित 8वीं बैठक को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने कहा कि किसी भाषा की रक्षा और संरक्षण का सबसे श्रेष्‍ठ तरीका उसका लगातार उपयोग करना है। उन्‍होंने हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने का भी आह्वान किया।

उन्‍होंने कहा कि हमें सभी मातृभाषाओं या देसी भाषाओं का पूरा सम्‍मान करना चाहिए। भारत जैसे देश में अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान बहुत लाभकारी है। भारत समृद्ध भाषाई विविधता का देश है। उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया कि न तो कोई भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का विरोध होना चाहिए।

हैदराबाद को संस्‍कृति और भाषाओं का संगम बताते हुए उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि इस शहर ने तेलुगू के साथ-साथ हिन्‍दी और उर्दू के प्रोत्‍साहन, प्रसार और विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्‍होंने कहा कि श्री त्रिलोक चंद्र शास्त्री, पंडित कृष्ण दत्त, पंडित विनायक राव विद्यालंकार, श्री बद्री विशाल पित्ती और अन्य विद्वानों ने इस क्षेत्र में हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए सराहनीय योगदान दिया है।

देश में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी के महत्व के बारे में उपराष्ट्रपति ने कहा कि राज्यसभा की हिंदी सलाहाकार समिति का मुख्य उद्देश्य उच्‍च सदन के दैनिक कार्य में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना है।

उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि सरल हिंदी शब्दों की एक पुस्तिका या शब्दकोश प्रकाशित किया जाना चाहिए। यह गैर-हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों के लिए बहुत फायदेमंद होगा। उन्होंने राजभाषा विभाग से अनुरोध किया कि सरल हिंदी शब्दों के उपयोग के बारे में सांसदों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया जाए।

राज्यसभा के सभापति का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद श्री नायडू ने यह सुझाव दिया था कि हिन्‍दी सलाहकार समिति की एक साल में दो बैठकें आयोजित की जानी चाहिए और एक बैठक किसी गैर-हिंदी भाषाई क्षेत्र में होनी चाहिए। आज हैदराबाद में आयोजित यह बैठक उस श्रृंखला की पहली बैठक थी।

श्री नायडू ने उम्मीद जताई कि हैदराबाद में आयोजित राजभाषा समिति की यह बैठक दक्षिण भारत और देश के अन्य राज्यों में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगी। इसके अलावा इससे भाषाओं में संवाद बढ़ाने और शब्दावली तथा साहित्य को समृद्ध बनाने में भी मदद मिलेगी।

हिंदी को बढ़ावा देने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा का उल्लेख करते हुए श्री नायडू ने कहा कि गांधीजी ने 1918 में मद्रास में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी। उन्‍हीं की प्रेरणा से 1935 में हैदराबाद में भी हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हुई थी।

राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश, सांसद श्री के केशव राव, श्री सत्यनारायण जटिया, प्रो मनोज झा, श्री रवि प्रकाश वर्मा, श्री हुसैन दलवाई, राज्यसभा के महासचिव श्री देश दीपक वर्मा और हिंदी सलाकार समिति के अन्य सदस्य भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

सौजन्य से: pib.gov.in

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