Wednesday 19 November 2014

Text of PM's remarks at interaction with civil society groups at Fiji National University

नमस्‍ते। मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि किस विषय पर बोलूं और आप क्‍या सुनना चाहते होंगे. फिजी की यह मेरी पहली मुलाकात है, और भारत की प्रधानमंत्री की 33 साल के बाद मुलाकात है। यहां के जीवन में ऐसे कई मूल्‍य हैं जो हमें और भारत को जोड़ते हैं और यह भारत का भी दायित्‍व बनता है और फिजी का भी दायित्‍व बनता है कि हम उन मूल्‍यों को जितना अधिक बढ़ावा दें, उन मूल्‍यों को जितनी अधिक ताकत दें, उतना हमारी विशालता में भी फर्क पड़ेगा और हमारी ताकत में भी बढ़ोतरी होगी। 

लोकतंत्र। Democracy. आज दुनिया में उसका जो मूल्‍य है, उसको जो महत्म्य है, किसी न किसी रूप में दुनिया के सभी देश लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ने के लिए मजबूर हुए हैं। कुछ लोग चाहते हुए करते होंगे, कुछ लोग मजबूरन करते होंगे, लेकिन आज विश्‍व में एक वातावरण बना है कि अगर वैश्विक प्रवाह में हमें अपनी जगह बनानी है तो लोकतंत्र दुनिया के साथ जुड़ने का एक सबसे सरल रास्‍ता बन गया है। फिजी ने बहुत उतार-चढ़ाव देखें हैं, लेकिन एक खुशी की बात है कि कुछ महीने पहले लोकतांत्रिक ढंग से आपने अपनी सरकारी चुनी है। फिर एक बार फिजी ने लोकतंत्र में अपनी आस्‍था प्रकट की है और जब फिजी लोकतंत्र में आस्‍था प्रकट करता है, तब वो सिर्फ फिजी तक समिति नहीं रहता है। लोकतंत्र एक ऐसी ताकत है जो फिजी को विश्‍व के लोकतांत्रिक फलक पर उसकी जगह बना देता है, और लोकतंत्र एक ऐसी व्‍यवस्‍था है, जहां हर एक को अपना जीवन, अपना लक्ष्‍य, अपने इरादे, अपने सपने, उसे साकार करने का रास्‍ता चुनने का हक रहता है। वो अपनी जिंदगी के फैसले एक राष्‍ट्र के रूप में भी एक सामूहिक मन के साथ कर सकता है। अगर कोई गलती भी हो जाए तो लोकतंत्र एक ऐसी व्‍यवस्‍था है कि उस में सुधार की पूरी संभावना रहती है। 

मैं आशा करूंगा कि फिजी ने जो लोकतंत्र के मार्ग को स्‍वीकार किया है, वो और फले-फूले-खिले। यहां का मन भी लोकतंत्रिक बने, व्‍यवस्‍थाएं भी लोकतांत्रिक बने और न सिर्फ फिजी.. इस भू-भग के और छोटे-छोटे कई टापू है, देश है, उनके जीवन पर भी फिजी की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का प्रभाव पैदा हो और मुझे विश्‍वास है कि आने वाले समय में यहां का लोकतंत्र और अधिक मजबूत होगा, और अधिक सामर्थ्‍यवान होगा। 

दुनिया में एक क्षेत्र पर आज सर्वाधिक ध्यान केंद्रित हो रहा है और वो है - ज्ञान, शिक्षा। दुनिया इस बात को मानती है कि 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और अगर 21वीं सदी ज्ञान की सदी है, तो 21वीं सदी में जो भी आगे बढ़ना चाहता है, जो भी अपनी जगह बनाना चाहता है, वो गरीब से गरीब देश क्‍यों न हो, अमीर से अमीर देश क्‍यों न हो। ताकतवर देश क्‍यों न हो, लेकिन उसे भी ज्ञान अर्जित करने के मार्ग पर जाना पड़ेगा, ज्ञान के आधार पर आगे बढ़ना पड़ेगा। और ज्ञान के फलक इतने विस्‍तृत हो रहे हैं। पूरा ब्राह्माण ज्ञान पिपासुओं के लिए एक पूरा खुला मैदान है और पूरे ब्रह्माण की जो स्थिति है उसमें आज मनुष्‍य जो जानता है वेा शायद एक प्रतिशत भी नहीं जानता होगा। अभी तो और कुछ जानना बाकी है। और उसके लिए ज्ञान हो, रिचर्स हो, प्रयोग हो। इस पर जितना बल मिलता है उतना ही जीवन नई ऊंचाईयों को प्राप्‍त करता है और हमारी universities, हमारे शिक्षा के दान एक तो उनका रास्‍ता यह हो सकता है। जो किताबों में है वो परोसते चल जाए। पीढ़ी दर पीढ़ी हम देते चले जाए। हमारे दादा जो कितना पढ़ते थे, हम भी वही पढ़े और हमारे पोते जो पढ़ने वाले हैं हम भी उनके लिए छोड़ कर चले जाए। तो वो जीवन की स्थगितता होती है, एक रूकावट आ जाती है। लेकिन हर पीढ़ी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ खोज करके जाती है, नये आविष्‍कार करके जाती है। कुछ नया प्राप्‍त करके दुनिया को देने का सामर्थ्‍य रखती है। 

तो खोज करने वाली जो पीढ़ी है, वो क्षेत्र के लोग हैं, वो relevant बने रहते हैं, नहीं तो वो भी irrelevant हो जाते हैं। और इसलिए universities का काम रहता है कि मूलभूत तत्‍वों को तो जरूरत हमें पढ़ाना पड़ेगा, लेकिन मूलभूत तत्‍वों को पढ़ने-पढ़ाने के बाद उन्‍हीं मूलभूत तत्‍वों के आधार पर नये आविष्कार की और कैसे चला जाए? नई खोज के लिए कैसे चला जाए? मानव कल्‍याण की जो आवश्‍यकतायें है, वो आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए हम क्‍या कर सकते है? 

विश्‍व ने पिछले 200 साल में जितने अविष्‍कार किए हैं, उससे ज्‍यादा गत 30-40 साल में किये है। जगत पूरी तरह बदल चुका है। नये आविष्‍कारों ने जीवन को समेट लिया है। हम कल्‍पना कर सकते हैं 20 साल पहले मोबाइल फोन का क्‍या रोल था और आज क्‍या रोल है। एक information technology ने जीवन को कैसे बदल दिया। जीवन की तरफ देखने का दृष्टिकोण कैसे बदल गया, जीवन जानने के रास्‍ते कैसे बदल गए। एक अविष्‍कार पूरे युग को कैसे बदल देता है, यह हमारे सामने हुई घटना है। क्‍योंकि हम उस जीवन को भी जानते हैं जबकि मोबाइल फोन या connectivity नहीं थी और हम उस जीवन को भी जानते हैं जो उसके बिना जीने के लिए मुकश्किल कर देता है। उन दोनों चीजों के हम साक्षी है। अब ऐसे अवस्‍था के लोग हैं जो दोनों के बीच ऐसे खड़े हैं जो कल भी देखा है और आने वाले कल की संभावना भी देख रहे हैं और यही हमें प्रेरणा देती है। और इसलिए universities वो सिर्फ ज्ञान परोसने के केंद्र नहीं होते हैं, universities ज्ञान अर्जित करने के केंद्र बनते हैं, सम्‍बोधन करने के केंद्र बनते हैं और मुझे विश्‍वास है भले ही यह university नहीं हो, लेनिक यह नई university भी आने वाले दिनों में एक पूरे region के लिए, यहां की पूरी समस्‍याओं के लिए, सामान्‍य मानव के जीवन में बदलाव लाने के लिए वो कौन सा सामर्थ्‍य पड़ा हुआ है। जिस सामर्थ्‍य को तब तक हमने छुआ नहीं है, उस सामर्थ्‍य को कैसे छुआ जाए? और उसमें हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं, इसकी दिशा में अगर प्रयास होता है तो मैं मानता हूं कि university गया, काम सार्थक हो जाता है। 

भारत में नई सरकार बनी है। अभी तो इस सरकार की उम्र छह महीने है। लेकिन भारत सिर्फ भारत के लिए नहीं जी सकता है। न ही भारत का निर्माण सिर्फ भारत के लिए बना है। हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, महापुरूषों ने यह हमेशा कहा है कि भारत एक वैश्‍विक दायित्‍व को लेकर पैदा हुआ है। उसका जीव मात्र के लिए जगत मात्र के लिए कोई-न-काई दायित्‍व है। और उस दायित्‍व को पूरा करने के लिए उस देश को पहले सज्‍य होना पड़ता है। अपने आप को सामर्थ्‍यवान बनाना पड़ता है। भारत वो देश नहीं है कि वहां के करोड़ो-करोड़ो नागरिक भरने के लिए देश चलाया जाए। भारत वो देश है जिसने विश्‍व को कुछ देने की जिम्‍मेदारी उसके सिर पर है। वो क्‍या देगा, कब देगा, कैसे देगा, कौन देगा - यह तो समय ही तय करेगा। लेकिन उसका कोई वैश्विक दायित्‍व है इस बात में किसी को कोई आशंका नहीं है। 

दुनिया कहती है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। और कुछ लोग कहते हैं कि एशिया में.. कुछ लोगों को लगता है कि चीन की सदी है। किसी को लगता है कि हिंदुस्‍तान की सदी है। लेकिन इस बात में किसी को कोई दुविधा नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। अगर 21वीं सदी ज्ञान की सदी है, और 21वीं सदी एशिया की सदी है तो फिर तो भारत की जिम्‍मेदारी और बढ़ना स्‍वाभाविक है। लेकिन क्‍योंकि जब-जब मानवजा‍त ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत विश्‍व गुरु के स्‍थान पर रहा है। पूरा पाँच हजार साल का इतिहास देखा जाए। सोने की चिडि़या कहलाता था। ज्ञान युग - उसका नेतृत्‍व हमेशा भारत ने किया है। शायद बाहुबल में वो काम नहीं आया होगा, धनबल में भी काम नहीं आया होगा, लेकिन जब ज्ञान के बल के सामर्थ्‍य की बात आती है तो भारत हमेशा आगे निकल चुका है। और इसलिए भारत का दायित्‍व बनता है कि वो ज्ञान के माध्‍यम से और नई विधाओं का आविष्‍कार करके दुनिया के सामने अपनी ताकत को दिखाए। और भारत में सामर्थ्‍य है। तभी भारत ने मंगलयान में सफलता प्राप्‍त की। कुछ लोगों को लगता होगा कि भई लोग चंद्र पर जा रहे हैं अब मंगल पर गए उसमें क्‍या है, लेकिन पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाले हम अकेले हैं। और आज diesel और petrol के दाम इतने है कि एक किलोमीटर कहीं जाना है तो कम से कम दस रुपये खर्चा होता है। हमें मंगलयान पहुंचने में एक किलोमीटर का सिर्फ सात रुपया खर्चा हुआ है। 

यह संभव इसलिए होता है कि युवा शक्ति में सामर्थ्‍य है और भारत ने इसे एक सौभाग्‍य भी माना है, एक जिम्‍मेवारी भी मानी है और एक अवसर भी माना है। सौभाग्‍य यह है कि हम उस युग के अंदर है, जबकि दुनिया में हिंदुस्‍तान सबसे जवान है। 65% जनसंख्‍या हिंदुस्‍तान की 35 साल से कम उम्र की है। जिस देश में 800 मिलियन लोग जो 35 साल से कम उम्र के हैं, जबकि सारी दुनिया में सबसे ताकतवर देश भी बूढ़े होते चले जा रहे हैं, तो यह एक अवसर है, पूरे मानव जात की सेवा करने के लिए हिन्‍दुस्‍तान के नौजवान के पास अवसर है। उसे अपने आप को सज्‍य करना होगा। और हमारी सरकार का प्रयास यह है कि हमारी युवा शक्ति को अवसर दें। और इसमें बहुत बड़ा अभियान चलाया है - Skill India. दुनिया को जो work force की जरूरत है उस प्रकार का Human Resource Development कैसे हो, Skill Development कैसे हो? हर भुजा में हुनर कैसे हो? ताकि वो दुनिया को कुछ-न-कुछ दे सके। और ये हुनर ही तो है जिसके कारण सदियों पहले भारतीय दुनिया के कोने-कोने में पहुंचे थे - आपके पूर्वज Fiji भी तो आए थे। 

वो हुनर, वो सामर्थ्‍य, विश्‍व के आवश्‍यकताओं के अनुसार हो हुनर। विश्‍व पर बोझ बनने के लिए नहीं। विश्‍व के भले-भलाई के लिए इस युवा शक्ति को Skill Development के माध्‍यम से सजय करना, जोड़ना, उसका एक Global Exposure बने। उसका सोचने का दायर Global बने। वे वैश्विक परिवेश में सोचने लगे। वे वैश्विक आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए अपने आप को सज्‍य करने के लिए आतुर हो। ऐसी एक व्‍यवस्‍था को बनाने का प्रयास हमने प्रारंभ किया है, और मुझे पूरा भरोसा है कि ये जिम्‍मेदारी हिन्‍दुस्‍तान निभाएगा। दुनिया की आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए भारत इस काम को कर पाएगा। 

एक जमाना था शिक्षा का महत्‍व था। अक्षर ज्ञान का महत्‍व था। पढ़ने-पढ़ाने का महत्‍व था। लेकिन वो युग बहुत पीछे रह गया है। आज कितने ही पढ़े-लिखे क्‍यों न हों, लेकिन अगर आप Information Technology और Computer से अनभिज्ञ हैं, अगर आपको अज्ञान है, तो कोई आपकों शिक्षित मानने को तैयार नहीं है। परिभाषा बदल गई है। और ये नई Technology की गति इतनी तेज है कि अगर आप Computer पर काम कर रहे हैं और अगर आपकी माता जी देखें, या दादी मां देखे, तो गर्व करें, कि “वाह बेटा तूझे इतना कुछ सारा आता है! कैसे करते हो?” लेकिन अगर आपका दस साल का पोता देख ले तो कहता है “क्‍या दादा! आपको कुछ नहीं आता है!” ये इतना अंतर है दो पीढ़ी में कि जिस काम के लिए आपकी दादी मां गर्व करती है कि मेरा पोता बहुत अच्‍छा जानता है, उसी व्‍यक्ति को उसी काम करता हुआ देख करके पोता कहता है कि “दादा तुम्‍हें कुछ नहीं आता है। आप अनपढ़ हो।“ 

आप कल्‍पना कर सकते हैं तीन पीढ़ी मौजूद हों तब कितने दायरे में ज्ञान विज्ञान और technology ने कितना बड़ा दायरा बदल दिया है। और तब जा करके, हम उससे अछूते नहीं रह सकते हैं। एक समय था गरीब और अमीर के बीच की खाई की चर्चा हुआ करती थी। Haves and have-nots की चर्चा हुआ करती दुनिया के अंदर। आने वाले उन दिनों में चर्चा होने वाली है Digital Divide की। और पूरा विश्‍व अगर Digital Divide का शिकार बन गया, तो जो पीछे रह गया है उसको आगे जाने में दम उखड़ जाएगा। और इसलिए कैसे भी करके दुनिया को इस Digital Divide के संकट से बचाना पड़ेगा। भारत ने कोशिश की है - Digital India का सपना देखा है। जैसे एक सपना देखा Skill India, दूसरा सपना देखा है Digital India. आधुनिक से आधुनिक विज्ञान, आधुनिक से आधुनिक टेक्‍नोलॉजी उसकी वहां अंगुलियां पर होनी चाहिए। वो सामर्थ्‍य में से होना चाहिए। 

और भारतवासियों के संबंध में लोगों का देखने का दृष्टिकोण बहुत अलग है। मुझे एक घटना बराबर स्‍मरण आती है। मैं एक बार Taiwan गया था। Taiwan में जो उनका interpreter था, वो Computer Engineer था। और मेरी कोई वहां 7-8 दिन की वहां tour थी, तो मेरे साथ रहता था। वो Taiwanese Chinese language जो लोग उपयोग करते है, वह बोलता है तो मुझे वह interpret करता था, वही काम करता था। 24 घंटों मेरे साथ रहता था, तो धीरे-धीरे दोस्‍ती हो गई। दोस्‍ती हो गई तो एक दिन फिर हिम्‍मत करके उसने मुझसे पूछा, आखिर दिनों में, कि “मैं आपके एक बात पूंछू? आपको बुरा नहीं लगेगा न?” 

मैंने कहा, “नहीं नहीं आप पूछिए।“ 

“नहीं-नहीं, आपको बुरा लग जाएगा।“ 

बेचारा संकोच कर रहा था पूछ नहीं रहा था। मैंने कहा “बताइए न क्‍या पूछना है?” 

उसने कहा कि “हमने सुना है, पढ़ा है, कि हिन्‍दुस्‍तान तो जादू टोना करने वालों लोगों का देश है। Black Magic वालों का देश है। सांप-सपेरों का देश है।“ 

बोला “सचमुच में ऐसा देश है?” 

मैंने कहा “मुझे देखकर क्‍या लगता है? मैं तो कोई जादू-वादू तो करता नहीं हूं।“ 

उसने कहा “नहीं, आपको देखने के बाद ही मन करता है कि पूंछू कि क्‍या है” 

मैंने कहा “तुम्‍हारा सवाल सही है। एक ज़माना था, हमारे पूर्वज सांप-सपेरे की दुनिया में जीते थे। लेकिन अब हमारा बड़ा devaluation हो गया है। अब हमारे में वो सांप वाली ताकत रही नहीं। और इसलिए हम अब mouse से खेलते हैं।“ 

और हिन्‍दुस्‍तान का नवजान mouse पर उंगली दबार कर दुनिया को हिलाने की ताकत रखता है आज – ये सामर्थ्य हमने पैदा किया है। ये नया Digital World है। उसमें भारत के नवजानों ने अपना कमाल दिखाई है। लेकिन इतने से ही सीना तानकर रहने से काम नहीं चलने वाला है। हमने आने वाली शताब्‍दी के अनुसार को सज्य करना होगा, और वो हम अगर कर पाते हैं तो और नई ऊंचाईयों को पार करना होगा। और वो हम अगर कर पाते हैं तो हम विश्‍व को बहुत कुछ दे सकते हैं। हमारा प्रयास उस दिशा में है। हमने एक ऐसा अभियान चलाया है जो यहां हिन्‍दुस्‍तान के लोग रहते हैं उनकों जरूर मन को पसंद आया होगा। और वो है स्‍वच्‍छता का अभियान. Cleanliness. आपके बच्‍चें हिन्‍दुस्‍तान आने की बात होती होगी तो कहते होंगे "नहीं!" उनका नाक सिकुड जाता होगा। हम ऐसा देश बनाएंगे, आपके बच्‍चों को वहां आने का मन कर जाए। उसको नाक सिकुड़ने की इच्‍छा नहीं होगी। उसको आने का मन कर जाएगा ऐसा देश बनाना है। और उस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। 

आज सुबह में आया, यहां के सरकार ने बहुत ही स्‍वागत किया सम्‍मान किया। हमने कुछ घोषणाएं की हैं, कुछ निर्णय किए हैं। एक तो भारत की तरफ दुनिया का बहुत ध्‍यान है सारी दुनिया भारत की तरफ देख रही है - जाना चाहती हैं आना चाहती हैं। लेकिन आपको कभी-कभी लगता होगा कि अस्‍पताल जाना अच्छा है, embassy जाना बुरा है। मैं भले ही Fiji में पहली बार आया हूं, लेकिन आपकी पीड़ा का मुझे पता रहता है। लेकिन आप सज्‍जन लोग हैं इसलिए शिकायत करते नहीं हैं। 

हमने निर्णय किया है, कि अब फिजी से और यह Pacific महासागर के टापूओं से आने वाले लोगों के लिए Visa-On-Arrival. बाते छोटी-छोटी होती है, लेकिन वो ही बदलाव लाती है। और उस दिशा में हम काम कर रहे हैं। 

आज भारत ने यह भी कहा है कि फिजी मैं Small or Medium Level की जो industries हैं, उनको upgrade करने के लिए Five Million American Dollar फिजी को हम देंगे। फिजी के नागरिकों को भारत scholarships देती है, यहां के students को, यहां के Trainees को - हमने निर्णय किया है कि वो संख्‍या अब double कर दी जाएगी। 

जो समुद्री तट पर रहने वाले देश हैं। भारत के पास भी बहुत बड़ा समुद्री तट है और जब Global Warming की चर्चा होती है तो समुद्री तट पर रहने वाले सबसे ज्‍यादा चिंतित होते हैं और कभी पढ़ ले Nostradamus की आघाई तो उनको तो कल ही दिखता है, कल ही डूबने वाला है। और कभी अख़बार में आ जाता है कि दो मीटर समुद्र चढ़ जाने वाला है और कभी तीन मीटर, तो वो सोचता है कि मेरा घर तो दूर ले जाओ भाई। एक बहुत बड़ा तनाव रहता है। और उसमें भी एक बार ज्‍यादा ही waves में उछाल आया तो यार लगता है कि अब तो आया, मौत सामने दिखती है। Global Warming की चिंता है। दुनिया को चिंता है। और ऐसी जगह पर रहने वालों को ज्‍यादा चिंता है। भारत भी उसमें से एक है। इसकी समस्‍या का समाधान खोजना पड़ेगा। हमारी जीवनशैली को बदलना पड़ेगा। Exploitation of the nature - यह crime है यह हमें स्‍वीकार करना पड़ेगा। Milking of nature - इतना ही मनुष्‍य को अधिकार है। Exploitation of the nature - मनुष्‍य को अधिकार नहीं है। तो जो बिगड़ा सो बिगड़ा, लेकिन आगे न बिगाड़े - यह जिम्‍मेवारी हमने निभानी होगी। पूरे विश्‍व को निभानी होगी। लेकिन जो बिगड़ा है उसको भी बनाने की कोशिश करनी होगी। और इसलिए इस बार हमने तय किया है - One million American dollar से एक Adaption Fund के रूप में एक fund बनाया जाएगा, ताकि इस भू-भाग में Technologically upgradation करके इस Global Warming के दु:भाव से कैसे बचा जा सके, यहाँ के जीवन को कैसे रक्षा मिले, उस दिशा में काम करने का हमने निर्णय किया है। 

Global Warming की चर्चा करता हैं तो energy एक ऐसा क्षेत्र है, जहां सबसे ज्‍यादा चिंता का विषय रहता है। और उसके लिए हमने तय किया है कि renewal energy हो, solar energy हो, wind energy हो, इसकी generation के लिए, इस प्रोजेक्‍ट को करने के लिए 70 Million American dollar का line of credit देने का। 

फिजी की Parliament की Library आधुनिक बने, E-Library बने, उसकी जिम्‍मेवारी भी भारत लेगा ताकि, हां, उस Library का उपयोग हर कोई कर सके। 

यहां राजदूत भवन बनाने का सोचा है। आप लोग मिलकर देखिए, बनाइये, हम लोग आपके साथ रहेंगे। 

तो कई ऐसी बाते हैं जिसको ले करके हम देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का प्रयास... और वो मोदी नहीं कर रहा है, यह सवा सौ करोड़ देशवासी कर रहे हैं। हर हिंदुस्‍तानी के मन में जज्‍बा पैदा हुआ है - उसको लगता है “नहीं, मेरा देश ऐसा नहीं रहना चाहिए” । और कभी कभी तो लगता है कि लोग बहुत आगे है, सरकार बहुत पीछे है। लेकिन जिस तेज गति से आज देश चल पड़ा है। वो चलता रहेगा और भारत लोकतांत्रिक मूल्‍य के कारण, वसुधैव कुटुंभकम की भावना के कारण “सर्वे भवंतु सुखीना, सर्वे संतु निरमाहया” यह भाव के कारण, जिसकी सोच, जिसके विचार-आचार में यह चिंतन पडा है, वो अगर ताकतवर होता है, तो फिजी का भी भला होता है, इस उपखंड का भी भला होता है, मानवजाति का भी भला होता है। हरेक की भलाई में काम आने वाला देश बन सकता है। तो मैंने प्रारंभ में कहा था – वैश्विक दायित्‍व को निभाने के लिए राष्‍ट्र को तैयार होना चाहिए। और जिस दिशा में दुनिया जा रहा रही है, उसमें लगता है कि भारत मूलभूत चिंतन के द्वारा विश्‍व की बहुत बड़ी सेवा कर सकता है। और उस दिशा में काम करने का प्रयास चल रहा है। 

मुझे आप सब के बीच आने का अवसर मिला। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। university को मैं मेरी शुभकामनाएं देता हूं। मैं चाहूंगा कि यहां से भी ऐसे रत्‍न पैदा हो, जो पूरी मानवजात की सेवा करने का सामर्थ्‍य रखते हो - ऐसी यहां की शिक्षा- दीक्षा बने। 

बहुत-बहुत शुभकमानाएं। 

धन्‍यवाद। 

Courtesy: pib.nic.in

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