मृदा में पोषक तत्वों की कमी होने से कृषि उत्पादकता थम जाती है
मृदा के बेहतर स्वास्थ्य से टिकाऊ खेती का मार्ग प्रशस्त होता है
मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिवस कल यानी 19 फरवरी, 2020 को मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 19 फरवरी, 2015 को राजस्थान के सूरतगढ़ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना लॉन्च की थी जिसे ध्यान में रखते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिवस मनाया जाता है। यह संयोग ही है कि अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष भी उसी साल मनाया गया था।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) योजना का उद्देश्य प्रत्येक दो वर्षों में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना है, ताकि उर्वरक का छिड़काव करते समय मृदा में पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए एक ठोस आधार मिल सके। मृदा का परीक्षण इसलिए किया जाता है, ताकि पोषक तत्वों के प्रबंधन के आधार पर मृदा परीक्षण को बढ़ावा दिया जा सके। मृदा के परीक्षण से बिल्कुल सही मात्रा में उर्वरक का छिड़काव करना संभव हो पाता है जिससे खेती-बाड़ी की लागत घट जाती है। इससे पैदावार बढ़ जाती है जिससे किसानों को अतिरिक्त आय सुनिश्चित होती है। यही नहीं, इससे टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलता है।
देश में सभी किसानों को एसएचसी जारी करने में राज्य सरकारों की मदद के लिए यह योजना शुरू की गई है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनके खेत की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की वर्तमान स्थिति से अवगत कराता है और इसके साथ ही मृदा का स्वास्थ्य एवं इसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की समुचित मात्रा के बारे में आवश्यक जानकारियां देता है।
मृदा में मौजूद रसायनों के साथ-साथ इसके भौतिक एवं जैविक स्वास्थ्य के कमजोर पड़ जाने को भारत में कृषि उत्पादकता के थमने का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
इस दिशा में अनगिनत चुनौतियां हैं : भारत की जिस मिट्टी में खेती-बाड़ी हो रही है उनमें प्रति वर्ष 12-14 मिलियन टन तक पोषक तत्वों की कमी पाई जा रही है और उर्वरक उद्योग की पूरी क्षमता का उपयोग करने के बाद भी भविष्य में यह ऋणात्मक संतुलन के और बढ़ जाने की आशंका है। भारत में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, जस्ता, बोरॉन, लोहा, मैंगनीज और तांबा संबंधी पोषक तत्वों की कमी क्रमश: 95, 94, 48, 25, 41, 20, 14, 8 तथा 6 प्रतिशत तक है। पोषक तत्वों की मात्रा को सीमित कर देने से अन्य पोषक तत्वों का पूण लाभ नहीं मिल पाता है, जिससे उर्वरकों का अपेक्षा से कम असर होता है और इस तरह से फसल की उत्पादकता कम हो जाती है।
भारतीय कृषि में अधिक उर्वरक के इस्तेमाल की तुलना में उर्वरक/पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता में सुधार करना महत्वपूर्ण है। पोषक तत्व उपयोग क्षमता नाइट्रोजन में 30-50 प्रतिशत, फासफोरस में 15-20 प्रतिशत, पोटाशियम में 60-70 प्रतिशत, सल्फर में 8-10 प्रतिशत तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में 1-2 प्रतिशत है।
फसलों की पैदावार बढ़ाने और उन्हें उच्च स्तर पर बनाये रखने के लिए मिट्टी की गुणवत्ता, पौध विकास, फसल उत्पादकता और कृषि निरंतरता पर प्रभाव डालने वाले अन्य पूरक उपायों के साथ मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को समग्र रणनीति में शामिल किया जाना चाहिए।
सरकार सतत कृषि के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) घटक के अंतर्गत मृदा जांच प्रयोगशालाएं स्थपित करके/मजबूत बनाकर, जैवउर्वरक तथा कम्पोस्ट इकाई की स्थापना, माइक्रो न्यूट्रिएंट के उपयोग और उर्वरक के संतुलित इस्तेमाल के बारे में प्रशिक्षण के माध्यम से मृदा जांच आधारित संतुलित तथा एकीकृत न्यूट्रिएंट प्रबंधन को प्रोत्साहित कर रही है।
एसएचसी योजना 2015 के दौरान लॉन्च की गई। इसका उद्देश्य प्रत्येक दो वर्षों में देश में प्रत्येक खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति का मूल्यांकन करना है। चक्र-I (2015-17) के दौरान 10.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड और चक्र-II (2017-19) के दौरान 11.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को वितरित किये। सरकार ने एसएचसी योजना पांच वर्ष पहले लॉन्च किये जाने के बाद से अब तक 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये है।
योजना के अंतर्गत वर्ष 2014-15 से अभी तक 429 नई स्थायी मृदा जांच प्रयोगशालाओं (एसटीएल), 102 नई मोबाइल एसटीएल, 8752 मिनी एसटीएल तथा 1562 ग्रामीण एसटीएल की स्वीकृति दी है। इन स्वीकृत प्रयोगशालाओं में से 129 नई स्थायी मृदा जांच प्रयोगशाला, 86 नई मोबाइल एसटीएल, 6498 मिनी एसटीएल तथा 179 ग्रामीण एसटीएल स्थापित की जा चुकी हैं।
सरकार पोषकतत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना लागू कर रही है तथा उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए कस्टमाइज्ड शक्तिवर्धक उर्वरकों को प्रोत्साहित कर रही है। सिफारिश की गई सब्सिडी दरें (रुपया/किलोग्राम में) वर्ष 2019-20 के दौरान एन, पी, के तथा एस के लिए क्रमश: 18.901, 15.216, 11.124 तथा 3.526 रुपये हैं। मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने तथा प्राथमिक पोषक तत्वों के साथ उनके उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए बोरॉन तथा जस्ता पर क्रमश: 300 रुपये और 500 रुपये प्रति टन की दर से अतिरिक्त सब्सिडी दी गई है।
अभी तक एनबीएस योजना के अंतर्गत 21 उर्वरक लाये गये है। वर्तमान में सरकार द्वारा अधिसूचित 35 कस्टमाइज्ड तथा 25 शक्तिवर्धक उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है।
वर्ष 2019-20 के दौरान आदर्श गांवों के विकास की पायलट परियोजना प्रारंभ की गई है, जिसमें किसानों के व्यक्तिगत जमीन के मिट्टी के नमूने नमूना संग्रह ग्रिड के स्थान पर किसानों की भागीदारी से एकत्र किये गये हैं।
पायलट परियोजना के तहत प्रत्येक ब्लॉक से एक गांव को लिया जाता है और वहां मिट्टी के नमूने जमा किए जाते हैं और उनकी जांच होती है। इस तरह प्रत्येक गांव में अधिकतम 50 जांच प्रदर्शनियों (एक हेक्टेयर रकबा) का आयोजन होता है।
अब तक राज्यों और केन्द्र शासित देशों में 6,954 गांवों की पहचान की है। इन गांवों से 26.83 लाख नमूने जमा करने का लक्ष्य तय किया गया है, जिनमें से 21.00 लाख नमूने जमा किए गए, 14.75 लाख नमूनों का मूल्यांकन किया गया और 13.59 लाख कार्ड किसानों को दिए गए। इसके अलावा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए 2,46,979 मृदा जांच प्रदर्शनियां और 6,951 किसान मेले मंजूर किए गए हैं।
अगले पांच वर्षों के दौरान मिट्टी के नमूने लेने और उनकी जांच करने के लिए चार लाख गांवों को दायरे में शामिल करने का प्रस्ताव है। इस दौरान 2.5 लाख मृदा जांच प्रदर्शनी, 250 ग्राम स्तरीय मृदा जांच प्रयोगशालाओं की स्थापना, आईसीपी स्पेक्ट्रोमीटर से लैस 200 मृदा जांच प्रयोगशालाओं को सक्षम बनाना तथा 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सूक्ष्म पोषक तत्वों को प्रोत्साहन देना भी इसमें शामिल है।
भारत की 1.27 अरब आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। इस बात के मद्देनजर मिट्टी का उपजाऊपन कम होना चिंता का विषय है। यह बात और चिंतनीय हो जाती है क्योंकि हमारे यहां 86 प्रतिशत से अधिक सीमांत और छोटे किसान हैं।
मिट्टी, भोजन, पोषण, पर्यावरण और आजीविका सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण संसाधन है। इसलिए मृदा संसाधन प्रबंधन और महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना हमारी भावी पीढ़ियों के लिए जरूरी है। इसमें आगे किसी प्रकार का नुकसान न हो, यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड में 6 फसलों के लिए दो तरह के उर्वरकों की सिफारिश की गई है, इसमें जैविक खाद भी शामिल है। अतिरिक्त फसल के लिए भी किसान सुझाव मांग सकते हैं। एसएचसी पोर्टल से किसान अपना कार्ड प्रिंट करवा सकते हैं। इस पोर्टल पर 21 भाषाओं में खेती के बारे में सभी जानकारी उपलब्ध है।
कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभागों के संयुक्त प्रयासों से किसानों में जागरूकता बढ़ाई जा रही है। इन प्रयासों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केन्द्रों के नेटवर्क और तकनीकी सहयोग से बढ़ावा दिया जा रहा है। किसान अपने नमूनों की जांच के विषय में हर तरह की जानकारी www.soilhealth.gov.in पर प्राप्त कर सकते हैं तथा ‘स्वस्थ धरा से खेत हरा’ (यदि मिट्टी स्वस्थ है तो खेत हरा होगा) के मूलमंत्र को सार्थक बना सकते हैं।
राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (एनपीसी) ने 2017 के अपने अध्ययन में यह पाया था कि एसएचसी योजना से खेती को सहारा मिला है और उससे 8 से 10 प्रतिशत तक रसायनिक उर्वरक के इस्तेमाल में कमी आई है। इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड में उपलब्ध सुझावों के अनुसार उर्वरकों और सूक्ष्म पोषक तत्वों के इस्तेमाल से फसल में भी 5 से 6 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है।
सौजन्य से: pib.gov.in
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